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॥ प्रथमो विमर्शः॥ ॥३, अश्विनी श्रादि नक्षत्रो ३, सिद्धियोगादिक योगो ४, मेप विगेरे मी जेम चरई ते गोचर कहेवाय जे. “चरेरामस्त्वगुरौ" ए सूत्रथी य पर्य शब्द सिद्ध थयो के. एनो अर्थ “पूर्व पूर्वनी राशिथी उत्तर उत्तर r" एवो थाय ने ६, विद्यारंजादिक कार्यो ७, गम एटले यात्रा , , हाट, प्रासाद विगेरे अने तेना संबंधथी तेमा प्रवेश करवो ते पण मअने वास्तु नामनां बन्ने धारोनो कार्यधारमा समावेश अश् शके जे, रोमां वधारे कहेवार्नु होवाथी जूदां जूदां पार कर्या . विलग्न एटखे १०, तथा मिश्र एटले कहेलां अने नहीं कहेलां एवां घणां चारोए पकनो एक घारमा संग्रह करवो ते ११, था अग्यार पारोवमे व्यव
प्रथम तिथिधारने कहे . ना जया रिक्ता पूर्णा चेति निरन्विता । मध्योत्तमा शुक्ला कृष्णा तु व्यत्यया तिथिः ॥३॥ बीश्रारंजीने नंदा, ना, जया, रिक्ता अने पूर्ण ए प्रमाणे अनुक्रमे वी. ए रीते त्रण वार गणवाथी पंदर तिथि पूरी थाय बे. एटखे के विटने नंदा जाणवी, २-७-१२ ए तिथि ना जाणवी, ३-०-१३ रिका भने ५-१०-१५ ए तिथिउने पूर्णा जाणवी. श्रा नंदा विगेरे एटखे के पोतानां नाम प्रमाणे फळ आपनारी बे. ते विषे श्रीपतिए कडं खब, वास्तु, क्षेत्र अने नृत्यादिक आनंदवाळां कार्यो नंदा तिथिए विवाह, अलंकार, वाहन, प्रयाण तथा शांतिपौष्टिकादिक नक कर्मोने मामां थावे जे. युध तथा सैन्य उपर हुमलो करवो विगेरे विजयवाळां ए करवामां आवे . वध, बंध,घात, विष, अग्नि अने शस्त्रादिक संबंधी ए करवामां आवे बे. तथा विवाह, दीक्षा, यात्रा विगेरे मांगलिक कार्यो हामा श्रावे . सामान्य रीते तो अमावास्या अने रिक्ता तिथिने वर्जीने पुज कार्य करवामां आवे बे. तथा अमावास्याने दिवसे ते ज तिथिए ज्य कार्य सिवाय बीजां कार्य करवानो निषेध के. लक्ष कहे जे केमंत्ररक्षादीक्षालुओषु कर्मसु स्नाने । रिक्तादर्शाष्टम्यः शस्ताः॥" श, दीक्षा, कुष कार्य श्रने स्नान एटलां कार्यमां रिक्ता तिथि तथा अहमी ए पांच तिथि शुन्न ."
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