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________________ ॥ पञ्चमो विमर्शः॥ ३६१ "उदयत्यसुधिमिएिंद जणामि उद नवंसगो इत्य । तम्मि श्र लग्गविश्मे सनाहदि उदयसुधी ॥१॥" __ "हवे हुँ उदय अने अस्तनी शुधिने कहुं बुं-शहां उदयशुद्धि नवमांशमा रही . ते उदयशुधिमां लग्नमां अंगीकार करेल नवमांशने नवमांशनो स्वामी जोतो होय तो उदयशुद्धि जाणवी." _श्रानुं उदाहरण एजे-मिथुन लग्ननो मीन नवांशक लीधो होय त्यारे ते (मीन )ना स्वामी गुरुए जो मीन राशि जोवाती होय तो जदयशुद्धि जाणवी. एरीते सर्व काणे जाणवं. स्थापना नीचे प्रमाणे. व्यवहारप्रकाशमां तो श्रा बन्ने प्रकारनी शुधिने घणी मानी . एटलुं तेनुं फळ उत्तम कडं . ते आ प्रमाणे. "अंशाधिपतेदृष्टिर्यदांशशास्तपस्य नागास्ते १। नागपतेर्लग्ने वाऽप्यंशास्तपतेर्विलग्नास्ते ॥१॥ उदयास्तस्य च यदि दृष्टेः शुद्धिर्जवेदिखनेऽत्र । कान्ताया मङ्गट्यान्यतनूनि तनौ प्रजायन्ते ॥॥" "खग्नमां ग्रहण करेल नवमांशना स्वामीनी जो नवमांश उपर दृष्टि होय तो उदयशुद्धि नवमांशथी सातमा स्थानना स्वामीनी दृष्टि नवमांशथी सातमा स्थान उपर होय तो अस्तशुद्धि. अथवा नवमांशना स्वामीनी लग्न उपर दृष्टि होय तो उदयशुद्धि. नवमांशथी सातमाना स्वामीनी लग्नथी सातमा स्थान उपर दृष्टि होय तो अस्तशुद्धि. अहीं लग्नने विष जो दृष्टिथी उदय अने अस्तनी शुद्धि होय तो स्त्रीना शरीरमां घणां मांगलिक थाय जे." यतिवसनमा तो या प्रमाणे पण कडं जे."उदयास्तांशतुझ्याख्यराश्योरपि विलोकने । योगेऽथवा परे प्रादुरुदयास्तविशुद्धताम् ॥ १॥" • "उदयांश श्रने अस्तांशनी तुट्य नामवाळी बन्ने राशिना जोवामां अथवा योगमां केटसाक श्राचार्यो उदय अने अस्तनी शुद्धि कहे बे.” अहीं विलोकने एटले पोत भा०४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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