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________________ ॥ पञ्चमो विमर्शः॥ ३५३ तेनुं फळ आ प्रमाणे जे.-जो एक शेष रह्यो होय तो कलह थाय, बे शेष रह्या होय तो अग्निथी नय थाय, त्रण रह्या होय तो राजाथी जय थाय, चार रह्या होय तो चोरनो उपजव थाय अने पांच रह्या होय तो मरण थाय." आ प्रमाणे ज्योतिपसार विगेरेमां कडं जे. अथवा. "तिथिवारनलग्नाङ्कान् संमीट्य न्यस्य पश्चशः। रसा ६रामा ३ मही १ नागा वेदा ४ स्तेपु क्रमाद्भुवाः॥१॥ क्षेप्यास्ततो ग्रहै एर्नागे पञ्चशेपे फलं क्रमात् । रुजा १नि क्षितिनृ ३ च्चोरलयं । मृत्युजयं ५ तथा ॥॥ राशिपञ्चकशेषाणां योगे तु नवनिहते। पञ्चशेषे नवेन्नागनीतिलग्ने निशागते ॥३॥" "तिथि, वार, नक्षत्र अने लग्नना अंकने एका करीने तेने पांच वार स्थापन करवा. तेमां अनुक्रमे उ, त्रण, एक, आठ अने चार नाखवा. त्यारपती तेने नवे नाग देवो. नाग देतां एकथी पांच सुधी जो शेष रहे तो अनुक्रमे या प्रमाणे फळ जाणवू. एक शेष रहे तो व्याधि थाय, बे रहे तो अग्निश्री जय थाय, त्रण रहे तो राजाथी जय थाय, चार रहे तो चोरथी नय थाय अने पांच शेष रहे तो मत्यनय थाय. रात्रिना लग्नमां पांचे राशिमां जे शेष रहेल होय तेने एका करीने पठी नवे नाग लेतां जो पांच शेष रहे तो सर्पनो जय थाय. ॥इति बुधपञ्चकदोषः॥ मूळ श्लोकमां “पिनष्टि" एटले "( तत्काळ रिष्ट योगनो) नाश करे " एम कडं. ते विषे जातकवृत्तिमां पण एमज लख्यु डे के-"बुध, गुरु अने शुक्रना उत्कृष्ट बळे करीने तथा रिष्ट योग करनारा ग्रहो उपर तेमनी (बुध, गुरु बने शुक्रनी) पुष्ट (पूर्ण) दृष्टि पमवाथी सर्वे रिष्ट योगोनी निवळता श्राय " एम कर्दा बे, तेथी यहीं पण तेज प्रकारे का. हवे ते (बुध, गुरु श्रने शुक्र )नाज उच्चपणाने विपे शक्तिनुं फळ कहे जे. बलिष्ठः खोच्चगो दोषानशीति शीतरश्मिजः। वाकूपतिस्तु शतं हन्ति सहस्रं चासुरार्चितः॥५५॥ अर्थ-बलिष्ठ अने पोताना उच्च स्थानमा रहेलो बुध एंशी दोषोने हणे ने, (एवोज) गुरु सो दोषोने हणे जे अने ( एवोज ) शुक्र हजार दोषोने हणे वे.. __ बलिष्ठ एटले सूर्यना विबनी साथे रहेलो न होय ए आदिए करीने अत्यंत बळवान्. श्रा (बखिष्ठ ) तथा पोताना उच्च स्थानमा रहेलो ए वन्ने विशेषणो गुरु अने शुक्रने आ०४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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