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________________ ३३० ॥ श्रारंसिधि॥ "राहु लग्नमा रह्यो होय तो ते वरचें मृत्यु कहे जे, अने सातमे स्थाने रह्यो होय तो ते कन्यानुं मरण कहे ." ___ "त्याज्या लग्नेऽब्धयो मन्दात्" लग्नने विषे शनिथी श्रारंजीने चार ग्रहो (शनि, रवि, सोम, मंगळ) वर्ण्य बे. श्रा श्लोकनां अपवादस्थानो कद्दे बे.' चोथा विना बाकीनां पांचमा, सातमा, नवमा, दशमा स्थानमांथी कोश् सौम्य स्थानमा रहेलो शुल ग्रहोए जोयेलो चं रेखाने आपवावाळो वे. हवे बा, आठमा अने वारमा स्थान- अशुलपणुं होवाथी ते स्थानोमां ग्रहोनी स्थितिना निश्चयनो संग्रह कहे . ( अर्थात् आ स्थानो अशुल डे तोपण अमुक अमुक ग्रहो ते स्थानोए शुज जे. ए वात कहे . ) विवाहे नाष्टमाः श्रेष्ठाः पञ्च सूर्यशनी विना। षष्ठौ चेन्ऽसितौ तदन्त्येऽन्त्य इति केचन ॥ ३ ॥ अर्थ-विवाहमा सूर्य अने शनि विनाना पांच ग्रहो आपमे स्थाने श्रेष्ठ नथी, एटले के सूर्य तथा शनि ठमे स्थाने श्रेष्ठ बे, बीजा ग्रहो श्रेष्ठ नथी. बठे स्थाने रहेला चंड श्रने शुक्र पण तेज प्रमाणे जाणवा, एटले के चंग अने शुक्र बठे स्थाने श्रेष्ठ नथी, अने बाकीना पांच ग्रहो श्रेष्ठज बे. वळी केटलाक कहे जे के अन्त्य एटले बारमा स्थानमा रहेलो अन्त्य ग्रह एटले केतु श्रेष्ठ नश्री. आ उत्तम नंगमां ग्रहोनी संस्था जाणवी. विशेष श्रा प्रमाणे बे. "नौमे लग्नकलत्रनैधनगते शुक्रेऽरिसप्ताष्टगे, चन्छे रन्ध्रविलग्नषष्ठनिरते लग्नास्तगे नास्वति । तघनानुसुते गुरौ निधनगे सौम्येऽष्टजामित्रगे, जायाम्लोनिधिलग्ननाजि तमसि प्राहुर्न पाणिग्रहम् ॥१॥" “पहेला, सातमा अने आवमा स्थानमा मंगळ रह्यो होय, शुक्र बहे, सातमे के बाग्मे स्थाने होय, चं आठमे, पहेले के उठे स्थाने होय, सूर्य पहेले के सातमे स्थाने होय, शनि पण तेज प्रमाणे एटले पहेले के सातमे स्थाने होय, गुरु बाग्मे स्थाने रह्यो होय, बुध आग्मे के सातमे स्थाने रह्यो होय, तथा राहु सातमे, चोथे के पहेले स्थाने रह्यो होय तो ते वखते पाणिग्रहण ( विवाह ) कर्वा नथी.” आ स्थानोए आ ग्रहो अधम बे एम यतिवखनमां कडं जे. था बन्ने नंगथी बाकी रहेलां ग्रहो तथा स्थानो मध्यम जंगमां जाणवां. तेनी स्थापना नीचे प्रमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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