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________________ ॥पञ्चमो विमर्शः॥ ३२७ "जो लग्ननो स्वामी अने आग्मी राशिनो स्वामी परस्पर मित्र होय तो आग्मी राशिथी अने लग्ननी राशिथी उत्पन्न श्रयेलो दोप लावधी नाश पामे डे" एम बृहस्पति कहे बे. "तथा चतुर्थ रिष्पं वा मित्रत्वेन शुनं स्मृतम् । गुरुणा नृगुणा केन्ऽत्रिकोणस्थेन चेक्षितम् ॥ १॥" "तथा चोथु अने वारमुं लग्न परस्पर मित्रपणाए करीने युक्त होय, अने केन्द्र के त्रिकोणमा रहेला गुरु के शुक्रनी तेना पर दृष्टि पमती होय तो ते शुल कहेलु " एम सारंग कहे . तथा "होराष्टमं जन्मगृहाष्टमं वा, लग्नं शुनं झेज्यसितेक्षितं चेत् ।" "जो आठमी होरानुं लग्न होय के जन्मना स्थानथी आउमा स्थाननी राशिनु लग्न होय, अने तेना पर जो बुध, गुरु के शुक्रनी दृष्टि पमती होय तो ते लग्न शुन्न " एम केशव कहे . तथा "जन्मगृहजन्मन्नाच्यामष्टमजवनं मृतिप्रदं लग्ने। व्ययहिबुककेन्जसंस्थैः शुन्नग्रहैः शोजनं वलिनिः॥१॥" "जन्मनी राशिथी के जन्मना ग्रहथी श्रापमुं नवन जो लग्नमां होय तो ते मृत्यु आपनाएं , परंतु जो बारमा, चोथा के केन्प्रस्थानमां बळवान् शुन्न ग्रहो होय तो ते शुल " एम व्यवहारप्रकाशमां कडं बे. मूळ श्लोकमां लग्नलग्नाशयोश्च ए पदमां च शब्द लख्यो बे, तेथी जेष्काणनो स्वामी पण लग्नश्री बछे के बाग्मे होय तो ते पण तजवा योग्य वे. ते विषे लक्ष कहे के _ "लग्नस्थेऽपि गुरौ पुष्टः पष्ठस्थो लग्ननायकः।" "लग्नमां गुरु रह्यो होय तोपण जो लग्ननो स्वामी बघा स्थानमा रह्यो होय तो ते मुष्ट-अशुन बे." लदमीधर पण कहे जे के "विलग्नाधिपतौ षष्ठे वैधव्यं स्यात्तथांशपे। श्रेष्काणाधिपतौ मृत्युर्विलग्ने बलवत्यपि ॥१॥" "लमनो स्वामी तथा नवांशानो स्वामी जो स्थाने रह्यो होय तो विधवापj प्राप्त थाय ने, अने जेष्काणनो स्वामी बछे होय तो लग्न बळवान उतां पण मृत्यु थाय बे." खननो स्वामी आउमे स्थाने होय तो ते अशुजज बे, तेथी पण ( ते करतां पण ) जो आठमा नवनमा रहेलो लग्ननो स्वामी लग्नना जेष्काणथी बावीशमा जेष्काणमां होय तो ते घणोज अशुल . वळी जो लग्ननो स्वामी अने आठमा नवननो स्वामी एकज जेष्काणमा रह्या होय तो ते करतां पण अत्यंत वधारे अशुन बे. लग्नना, नवमांशना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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