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________________ २७६ ॥ श्ररंजसिद्धि ॥ "गुरुर्मघायां पुरुषं हन्ति जाग्ये स्थितः स्त्रियम् । उत्तराफाल्गुनी पादे घयं हन्ति न संशयः ॥ १ ॥ " " मघा नक्षत्रमा रहेलो बृहस्पति पुरुषने हो बे, पूर्वाफाल्गुनी मां रह्यो होय तो स्त्रीने हणे बे, अने उत्तराफाल्गुनीना पहेला पादमां रह्यो होय तो बन्नेने दणे बे. तेमां कांइ पण संदेह नथी. ( या सवा वे नक्षत्रो सिंह राशिनां बे. ) " "गोदावर्युत्तरतो यावन्नागीरथीतटं याम्यम् । तत्र विवाहो नेष्टः सिंहस्थे देवपतिपूज्ये ॥ २ ॥” "बृहस्पति सिंह राशिमां रह्यो होय त्यारे गोदावरी नदीना उत्तर कांठाथी श्ररंजीने गंगा नदीना दक्षिण कांता सुधीना वचला प्रदेशमां विवाह करवानुं इचचुं नथी. " केटलाएक श्राप्रमाणे कहे बे. ज्यांसुधी बृहस्पति मघा नक्षत्रने उलंघन न करे त्यांसुधी सिंहस्थनो दोष मोटो बे. ते विषे शौनक कहे वे के— "पितृ यदि सुरपूज्यो नीचर्दो वाऽथवाऽरिसंयुक्तः । कन्योढा वैधव्यं प्रयाति संवत्सरैः षङ्गिः ॥ १ ॥ " “जो बृहस्पति मघा नक्षत्रमां होय, अथवा नीच राशिमां होय, अथवा शत्रुस्थानव संयुक्त होय तो तेवा लग्नमां परणेली कन्या व वर्षे विधवा थाय बे. " जो मघा नक्षत्रने उलंघन करी गयो होय तो तेटलो बधो दोष नथी, तेथी करीने कन्याकाळनातिक्रमणथी, वरना लोगथी के देशना उपजव विगेरेना हेतुथी संपूर्ण सिंहस्थनो त्याग करवो अशक्य होय तो ते मघामां रहेला गुरुनोज त्याग करे बे. ते कहे के Jain Education International "बहवोऽप्येवं जगडुः सिंहारूढोऽपि वृत्रशत्रुगुरुः । समतिक्रान्तमर्दो न विरुद्धः सर्वकार्येषु ॥ ॥" "घणा आचार्यो कहे बे के इन्द्रनो गुरु बृहस्पति सिंह पर आरूढ थयो होय तोप मघा नक्षत्रने उलंघन करी गयो होय तो सर्व कार्यमां विरुद्ध नथी." पराशर कहे बे के – “सिंहां रहेला बृहस्पतिए जो सिंहना पहेला पांच नवांशो जोगवी लीधा होय तो अमुक देशमां सिंहस्थनो दोष लागतो नथी. ते या प्रमाणे. - " सिंहस्थे ज्योऽनुसिंहां शाकाह्नवी तीरयोर्द्वयोः । न पुष्टो गंगयोर्मध्यदेशेषु तु स दुःखदः ॥ १ ॥” “सिंहमां रहेलो बृहस्पति सिंहना प्रथम पांच नवांश जोगव्या पबी गोदावरीना दक्षिण कांठे तथा गंगाना उत्तर कांवे पृष्ट नथी. गोदावरी तथा गंगाजीना मध्य जागमां तो दुःखदायक . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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