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॥ आरंलसिद्धि॥ घरधणीना वंशजो चिर काळ रहे , अने जो तेथी अन्य स्थानोमा रह्या होय तो ते घरधणीना वंशजोथी वीजा जनो चिर काळ तेमां रहे , पण जो ग्रहो नीच स्थानमा रह्या होय तो तेमां वसनारा निर्धन रहे ."
"अनस्तगैः सितेज्येन्ऽजन्मराशिविलग्नपैः ।
स्वोच्चस्वदेवनागस्थैर्नवेच्चीसौख्यदं गृहम् ॥ ७ ॥" ___ "शुक्र, गुरु, चंड, जन्मनो स्वामी, राशिनो स्वामी अने लग्ननो स्वामी आटला ग्रहो अस्त पामेला न होय तथा पोतानां उच्च स्थाने, पोतानां क्षेत्रमा भने पोताना शंशमां रहेला होय तो ते घर लक्ष्मी तथा सुखने थापनारं थाय .”
___ "गृहिणीन्दी गृहस्थोऽर्के गुरौ सौख्यं सिते धनम् ।
विबले नाशमायाति नीचगेऽस्तंगतेऽपि च ॥ ए॥" "धरना प्रारंजसमये चंड निर्बळ होय, नीच स्थाने रह्यो होय अथवा अस्त पाम्यो होय तो घरधणीनी स्त्री नाश पामे बे. एज रीते सूर्य निर्बळ, नीच के अस्त होय तो घरधणी नाश पामे के. गुरु निर्वळ, नीच के अस्त होय तो सुखनो नाश श्राय यने शुक्र निर्बळ, नीच के अस्त होय तो धननो नाश थाय .”
श्रा प्रमाणे दैवज्ञवसनमां कडं . तथा"गृहेषु यो विधिः कार्यों निवेशनप्रवेशयोः।
स एव विषा कार्यो देवतायतनेष्वपि ॥१॥" "घरनुं स्थापन करवानो तथा तेमां प्रवेश करवानो जे विधि कहेलो तेज विधि विधाने देवालयोने विपे पण करवो (कहेवो-जाणवो.)" एम व्यवहारप्रकाशमां कडं वे.
लग्नने विषे दोषने कहे .वर्णेशो पुर्बलः कुर्यादावर्षादन्यहस्तगम् ।
एकोऽपि द्यून ७ कर्म १० स्थः परांशे स्याद्यदि ग्रहः ॥ ४ ॥ अर्थ-जो वर्णनो स्वामी उर्बळ होय तथा सातमा अने दशमा स्थानमा रहेलो एक पण ग्रह जो बीजाना नवांशमां होय तो ते घर एक वर्षमां वीजा धणीने हाथ जाय. अहीं श्लोकना उत्तरार्धमां कहेलो एकलोज योग होय तो कहेलुं फळ अनेकांत (अनिश्चित) जाणवू अने पूर्वार्धमा कहेलो योग होय तो अवश्य फळ मळे एन जाणवू, पण बन्ने योगो अन्य ग्रहना नवांशमा रह्या होय तो जलदीथी घरनो नाश थाय ने.
यात्रा करीने पाग वळेला राजादिकनो सामान्य रीते घर प्रवेश अग्रवा नवा घरमां प्रवेश करवानो विधि कहे .
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