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________________ ॥ चतुर्थो विमर्शः ॥ हवे वास्तु प्रारंभ करवाना महीना कहे बे. - . वैशाखे श्रावणे मार्गे पौषे फाल्गुन एव च । कुर्वीत वास्तुप्रारंभं न तु शेषेषु सप्तसु ॥ १५ ॥ अर्थ – वैशाख, श्रावण, मार्गशीर्ष, पोष ने फाल्गुन मासमां वास्तुनो आरंभ करवो, पण बीजा सात मासमां आरंभ करवो नहीं. वास्तुनो आरंभ एटले सूत्रपात ( दोरी नाखवी ते ) तथा खात मुहूर्त्त विगेरे कार्य जाए. दैव -- मां घरना आरंभ विषे मासना फळने या प्रमाणे कहे बे.. " शोकं १ धान्यं २ मृत्युदं ३ पञ्चतां ४ च, स्वाप्तिं ए नैःस्व्यं ६ संगरं वित्तनाशम् । २६१ स्वं ए श्रीप्राप्तिं १० वह्निजीतिं ११ च लक्ष्मीं १२, कुर्युत्राद्या गृहारंभकाले || " “चैत्र मासमां घर चणाववानो आरंज कर्यो होय तो ते शोक करावे बे १, वैशाख मास धान्यवृद्धि करे बे 2, ज्येष्ठ मास मृत्युने पे बे ३, पाम मास पण मृत्युने करे बे ४, श्रावण मास धननी प्राप्ति करावे बे ए, जाइपद मास निर्धनपणुं करे वे ६, आश्विन मास युद्ध करावे, कार्तिक मास धननो नाश करे बे ८, मार्गशीर्ष मास धन प्राप्त करे बे ए, पोष मास पण धननी प्राप्ति करे बे १०, माघ मास अग्निनो जय करे बे ११, तथा फागुन मास लक्ष्मी प्राप्त करे बे १२. " अहीं सर्वे मासो चांद्र एटले शुक्ल प्रतिपदाथी आरंभीने जाणवा. हवे घरना श्रारंजमां संक्रांतिए करीने युक्त एवा सूर्यमासो कहे बे. धामारजेतोत्तरदक्षिणास्यं, तुला लिमेषर्षज़नाजि जानौ । प्राकूपश्चिमास्यं मृगकुंजकर्कसिंह स्थिते व्यंगगते न किञ्चित् ॥ ७६ ॥ Jain Education International अर्थ - तुला, वृश्चिक, मेष छाने वृष ए चार संक्रांतिमां उत्तर धारनुं के दक्षिण धारनुं घर शरु करवुं. मकर, कुंज, कर्क छाने सिंह ए चार संक्रांतिमां पूर्व के पश्चिम घारवाळु घर शरु कर तथा द्विस्वभाव राशि एटले मिथुन, कन्या, धन ने मीन ए चार संक्रांतिमां कोइ पण घरनो आरंभ करवो नहीं, एटले के चारे दिशानां घारवालं पण घर शरु कर नहीं. नाचंनी टिप्पणीमां तो आ प्रमाणे लख्युं बे. - " मेष, धन ने सिंह एत्र संक्रांतिमां पूर्व मुखवाळा घरनो आरंभ करवाथी राजानो जय थाय बे, वृष, कन्या ने मकर संक्रांतिमां दक्षिणाभिमुखवाळा घरनो श्रारंभ करवाथी पुत्रादिकनुं मुत्यु थाय बे. मिथुन, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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