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________________ २२५ ॥ चतुर्थी विमर्शः॥ हवे वास्तुनुं जन्मनक्षत्र कहे जे. सामान्य रीते वास्तुनुं जन्मनक्षत्र कृत्तिका उ. तेने माटे व्यवहारप्रकाशमां कडं के "नापदतृतीयायां शनिदिवसे कृत्तिकाप्रथमपादे । व्यतिपाते राज्यादौ विष्ट्यां वास्तोः समुत्पत्तिः॥" "नाप्रपद मासनी त्रीज अने शनिवारने दिवसे कृत्तिका नक्षत्रना पहेला पादमां व्यतिपातना योगमां रात्रिनी आदिमां विप्टिमां वास्तुनो जन्म ले." इष्ट वास्तुनुं जन्मनक्षत्र आ प्रमाणे आवे -फळने आठ गुणुं करवू. मूळ श्लोकमां अधिक शब्द ने तेनो सर्वत्र संबंध करवो. फळने आने गुणी सत्यावीशे नाग देतां जे अधिक शेप रहे, तेटला, इष्ट वास्तुनुं जन्मनक्षत्र जाणवू. आ जन्मनक्षत्रथीज घरधणीनी साथे एटले घरधणीना जन्मनदानी साथे षमाष्टक विगेरेनो विचार कराय वे. ___ उपर कहेला नत्रना आंकने एटले इष्ट वास्तुनुं जन्मनक्षत्र जेटलामुं होय तेटल्ली संख्याने आवे नाग लेतां जे बाकी शेष रहे ते (तेटलामो) व्यय जाणवो. जो श्रावे नाग न चाले तो ते नत्रनो श्रांकज व्ययनो अांक जाणवो. ते व्यय त्रण प्रकारनो -पिशाच, यह अने राक्षस. ते विषे सारंग कहे जे के "पैशाचस्तु समायः स्यानासश्चाधिके व्यये। आयातूनतरो यदो व्ययः श्रेष्ठोऽष्टधा त्वयम् ॥ शान्तः १ क्रूरः २ प्रद्योतश्च ३ श्रेयान ४थ मनोरमः । श्रीवत्सो ६ विजवश्चैव ७ चिन्तात्मको व्ययोऽष्टमः ॥" "जे वास्तुमा व्ययनी समान (जेटलो) श्राय होय तो ते पैशाच व्यय कहेवाय ने, अने श्राय करतां व्यय अधिक होय तो ते राक्षस व्यय कहेवाय ने, तथा श्राय करतां व्यय अोगे होय तो ते यत् व्यय कहेवाय . तेमां आ बेझो यह व्यय श्रेष्ठ बे. आ व्यय पण आयनी जेम आठ प्रकारनो बे. तेनां नाम था प्रमाणेशांत १, क्रूर २, प्रद्योत ३, श्रेयान् ४, मनोरम ५, श्रीवत्स ६, विजव ७ तथा श्रापमो चिंतात्मक . नत्रना श्रांकने आगे नागतां जे शेष रहे ते व्यय जाणवो एम उपर कडं, तेमां जो एक शेष रहे तो ते शांत व्यय जाणवो, वे शेष रहे तो क्रूर व्यय जाणवो. एं रीते गणतां शून्य शेष रहे तो बेझो चिंतात्मक व्यय जाणवो. हवे अंशोने लाववानो उपाय कहे .फले व्ययेन वेश्माख्याकरैश्चाढ्ये विनाजिते । अंशाः शका १न्तकश्मापा ३ स्तेषु स्यादधमो यमः॥ ६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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