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॥ चतुर्थो विमर्शः॥ जो लग्नमां नवितव्यताना वशथी सर्व ग्रहोनी दृष्टि पमती होय तो कल्याणनी परंपरानो हेतुरूप राजयोग थाय बे. १. परस्परना वन्ने ग्रहो जो उंच राशिमा रहेला होय तो ते योगने जिनेश्वरो राजयोग कहे जे. तेमनुं परस्पर दर्शन तो महा फळवाळु . २.
हवे बीजा ब योगो कहे .रविवर्ज बादशगैरनुफाश्चन्त्राद्वितीयगैः सुनुफाः।
उत्जयस्थितैऽरधरा केमद्रुममन्यथैतेन्यः ॥ ३१ ॥ जन्मपत्रिकामा जे स्थाने चंग रह्यो होय ते स्थानथी बारमे स्थाने सूर्य विनानो बीजो कोइ पण ग्रह रहेलो होय तो ते अनुफा नामनो योग कहेवाय जे. चंऽश्री बीजे स्थाने जो रवि सिवाय को पण ग्रह रह्यो होय तो सुनुफा नामनो योग थाय . चंथी बारमा अने वीजा ए बन्ने स्थानोमां जो रवि सिवाय कोइ पण ग्रह रह्या होय तो ते धरधरा योग कहेवाय ने अने अन्यथा एटले चंथी बारमे तथा बीजे स्थाने रवि सिवायनो कोश् पण ग्रह रह्यो न होय तो केमद्रुम नामनो योग थाय जे.
सूर्याध्ययगैोशिक्षितीयगैश्चन्वर्जितेर्वेशिः।
उन्नयस्थैरुजयचरी राजयोगाः पमप्यमी ॥३॥ जन्मपत्रिकामा सूर्य जे स्थाने रहेलो होय ते स्थानथी बारमे स्थाने चंज सिवाय बीजो कोइ ग्रह रह्यो होय तो वोशि नामनो योग थाय ने, अने एज रीते बीजे स्थाने कोई ग्रह रह्यो होय तो वेशि योग थाय , तथा बारमा, अने बीजा ए बन्ने स्थानमांचं सिवायना कोई ग्रह रहा होय तो उजयचरी योग थाय जे. श्रा नए योगो राजयोग कहेवाय जे. थहीं मूळ श्लोकमांज बनी संख्या वतावी होवाथी सातमो केमद्रुम योग (उपरना श्लोकमां कहेलो चोयो योग) अधम एटले अशुल ने एम जाणवू. चंज उपर सर्व ग्रहोनी दृष्टि पमती होय तो तेज योग नग्न केमद्रुम नामनो राजयोग थाय बे. श्रा साते राजयोगो जातकमां कहेला बे. लस तो कहे जे के-“केंद्रस्थान के चंजनुं स्थान को पण ग्रहवझे युक्त होय तो केमद्रुम योग थतो नश्री." या प्रमाणे कुल ४० राजयोग थाय बे. यात्राना योगो सहितं सर्व योगो मळीने कुल एण्६ योगो थया. हवे मूळ ग्रंथकार चित्तनी शुद्धि सर्व निमित्तो करतां बळवान् ने ते कहे .
सकलेष्वपि कार्येषु यात्रायां च विशेषतः।
निमित्तान्यप्यतिक्रम्य चित्तोत्साहः प्रगबजते ॥ ३ ॥ अर्थ सर्व कार्योमा तथा विशेषे करीने यात्रामां तो सर्व निमित्ताने उलंघन करीने चित्तनो उत्साहज अधिक फळदायक जे. जो के निमित्त एटखे शरीरना मावा तथा
मा० ३२
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