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॥ चतुर्थो विमर्शः ॥
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मंगळ ने शनि होय तो बीजो योग थाय बे. तुलामां चंद्र ने शनि होय, धनुपमां गुरु होय ने सूर्य पोताना उच्च स्थानमा होइने एटले मे राशिनो होइने लग्नमां रह्यो होय अर्थात् मेष राशिना लग्नमां सूर्य रह्यो होय त्यारे त्रीजो राजयोग जाणवो. " हवे फरीने बे राजयोगोने कहे बे. - वृषे सेन्दी लग्ने सवितृगुरुतीदणांशुतनयैः,
सुहृ ४ काया ७ ख १० स्थैर्भवति नियमान्मानवपतिः । मृगेन्दे लग्ने सहज रिपुधर्मव्ययगतैः,
शशाङ्काद्यैः ख्यातः पृथुगुणयशाः पुंगणपतिः ॥ ५ ॥
वृष लग्नमां चंद्र होय, सिंहनो सूर्य होय, वृश्चिकनो गुरु होय अने कुंजनो शनि होय त्यारे पहेलो राजयोग थाय छे. मकर लग्नमां शनि होय, मीननो चंद्र होय, मिथुननो मंगळ होय, कन्यानो बुध होय, धनुषनो गुरु होय अने शुक्र तथा सूर्य गमे ते स्थाने होय त्यारे बीजो योग थाय बे.
फरीने त्रण राजयोगो कहे बे. - ये सेन्दौ जीवे मृगमुखगते भूमितनये, स्वतुङ्गस्थौ लग्ने भृगुजशशिजावत्र नृपती । सुतस्थौ वार्की गुरुश शिसिताश्चापि हिबुके,
कन्वति हि नृपोऽन्योऽपि गुणवान् ॥ ६ ॥
धनुषने विषे गुरु ने चंद्र होय, मकरमां मंगळ होय, श्र प्रमाणे ग्रहनी स्थिति होय त्यारे जो मीन लग्नमां शुक्र होय तो पहेलो ने कन्या लग्नमां बुध होय तो बीजो योग थाय बे. तथा कन्या लग्नमां बुध होय, मकरमां मंगळ छाने शनि होय, धनुषमां गुरु, चंद्र ने शुक्र होय त्यांरे त्रीजो गुणवान् राजयोग थाय बे.
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फरीथी त्रण राजयोगो कहे बे. - ऊषे सेन्दी लग्ने घटमृगमृगेन्द्रेषु सहितै - र्यमार्योऽनूत्स खलु मनुजः शास्ति वसुधाम् । जे सारे मूर्त्ते शशिगृहगते चामरगुरौ, सुरेज्ये वा लग्ने धरणिपतिरन्योऽपि गुणवान् ॥ ७ ॥
मीन लग्नमां चंद्र होय, कुंजनो शनि होय, मकरनो मंगळ होय ने सिंहनो अर्क (सूर्य) होय त्यारे ते माणस पृथ्वीनुं शासन करनार थाय बे. अर्थात् ते राजयोग कहेवाय बे. मेष लग्नमां मंगळ होय, चंद्रना गृहमां एटले कर्कमां गुरु होय त्यांरे बीजो योग थाय बे. अथवा कर्क लग्नमां गुरु होय अने मेषनो मंगळ दोय त्यारे बीजो राजयोग थाय बे.
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