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________________ १३० ॥ आरंनसिद्धि घन करीने आगळ जाय त्यारे ते राशि पूरी श्रतां सुधी मूशरिफ योग कहेवाय जे. ते पण निर्बळ २ १७. जेमके कट्पनाए करीने गुरु त्रीजा त्रिंशांशमां मंद गतिवाळो , ते अंशमां श्रावेलो सूर्यादिक क्रूर ग्रह ज्यां सुधी ते त्रीजा अंशने उलंघन करीने नथी जतो त्यांसुधी मुथुशिल कहेवाय बे, श्रने ज्यारे ते त्रीजा अंशनो त्याग करीने चोथा अंशमां जाय त्यारे राशिना अंतसुधी मुशरिफ कडेवाय जे. जो शीघ्र गतिवाळो ग्रह क्रूर ग्रहमां श्रावीने श्राबे योगो उत्पन्न करे तो मंद गतिवाळो ग्रह निर्बळ जाणवो.” प्रश्नप्रकाशमां तो नव प्रकारे ज निर्वळता आ प्रमाणे कही बे."पापः शीघ्रः १ शुल्लो वक्री २ बालो ३ वृद्धो ४ रिना ५ स्तगः ६। नीचः ७ पापान्तरे ७ ऽष्टस्थ ए इत्युक्तो बलवर्जितः॥१॥" "क्रूर ग्रह शीघ्रगामी होय १, शुज ग्रह वक्री होय २, बाळक ३, वृक्ष ४, शत्रुना स्थानमा रहेलो ५, अस्त पामेलो ६, नीच स्थाने रहेलो , क्रूर ग्रह साथे रहेलो ,श्रने लग्नथी थाउमे स्थाने रहेलो ए, श्रा नव प्रकारनो ग्रह निर्बळ कह्यो ." या प्रमाणे अन्यत्र पण संनव प्रमाणे पुर्वळता जाणवी. दिगीशः केन्गः श्रेयान् दिग्बली नालगस्तु न । बलिनौ जन्मलग्नेशौ केन्द्रोपचयगौ शुनौ ॥ ४ ॥ अर्थ-दिक्पति केंजमां होय तो ते शुल , पण दिग्बली अने सन्मुख रह्यो होय तो ते शुक्ल नथी. जन्मेश श्रने लग्नेश बळवान् होश्ने केंज के उपचयस्थानमा रह्या होय तो ते शुन्न . दिगीश एटले जे दिशामा जवु होय ते दिशानो स्वामी जे कोई ग्रह बळवान् थश्ने यात्रालग्नमां कोई पण केंजना स्थानमा रह्यो होय तो ते शुल ने, परंतु गमन करवा योग्य दिशानो स्वामी ग्रह लग्नमां दिग्बळी होय तो ते शुल नथी. ग्रहोगें दिग्बलीपणुं पूर्वे "लग्नाद्युत्क्रमकेन्द्र०” (द्वितीय प्रकाश श्ए) ए श्लोकमां कडुं ने, तथा लालग एटले जवा लायक दिशानो स्वामी ग्रह लग्नमां तेज दिशामा रहेवा वझे करीने जनारने सन्मुख अतो होय तो ते शुल नयी. ते विषे दैवज्ञवसनमां कडं बे के "दिगीश्वरो खलाटस्थो यदि वा दिग्बलान्वितः। __वधबन्धप्रदो यातुः केन्गस्तु जयार्थदः॥१॥" "दिशानो पति सन्मुख रह्यो होय, अथवा दिग्वळे करीने सहित होय तो प्रयाण करनारने वध बंधन करनारो श्राय जे, अने केंजमा रह्यो होय तो जय तथा धनने थापनार थाय ." दिशाना पतिने सन्मुख्न रहेवानो प्रकार पूर्वाचार्योए आ प्रमाणे कह्यो . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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