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॥ तृतीयो विमर्शः॥
१०५ मामां पंदर, बामां दश अने सातमा जागमां पांच दिवसनी स्थिति मे, एटखे के श्राटला आटला दिवस ते ते नागमां अनुक्रमे वत्स रहे ."
वत्सचार तथा वत्सनी स्थितिनुं चक्र
११० | १५ | ३० | १५ | १० १६]
कन्या तुल वृश्चिक
१० १५ ३० १५ १०५
उत्तर मिथुन कर्क सिंह
धन मकर कुंज १० १५ ३० १५ १०
दक्षिण
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श्रा वत्सने केटलाक श्राचार्यो “वास्तु” एवे नामे पण कहे .
हवे वत्स चारनुं फळ कहे जे.संमुखोऽयं हरेदायुः पृष्ठे स्याख्ननाशनः।
वामदक्षिणयोः किं तु वत्सो वाबितदायकः ॥१॥ अर्थ-श्रा वत्स सन्मुख रह्यो होय तो आयुष्य हरे ने, पापळ होय तो धननो नाश करे बे, पण माबी तथा जमणी बाजु रह्यो होय तो ते वांछितने आपनार थाय . बीजा श्राचार्यो वत्सनी ज जेम सूर्य विगेरे सर्वे ग्रहोनां घरो श्रा प्रमाणे कहे .
“मीनादित्रयमादित्यो वत्सः कन्यादिकत्रये ।
धन्वादित्रितये राहुः शेषाः सिंहादिकत्रये ॥ १॥" "सूर्य मीनथी पारंजीने त्रण त्रण संक्रांति सुधी अनुक्रमे पूर्वादिक दिशामा रहेलो बे, वत्स कन्या संक्रांतिथी आरंजीने, राहु धन संक्रांतिथी आरंजीने अने बाकीना ग्रहो सिंह संक्रांतिथी आरंजीने पूर्वादिक दिशामा रहेला बे.
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