SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ ॥ श्रारंसिधि॥ शुक्र की मंगळ अने मंगळयी पण बुध वधारे कष्टकारक , ते विषे दैवज्ञवक्षनमां कर्वा ने के ___ "प्रतिशुक्रेऽपि निर्गदनुकूलो बुधो यदि । ___ गतः प्रतिबुधे नान्यैः शक्यते रक्षितुं ग्रहैः॥१॥" __ "जो बुध अनुकूळ होय तो त्रण प्रकारे शुक्र प्रतिकूळ उतां पण प्रयाण करवू, अने जो प्रतिकूळ बुधमां प्रयाण कर्यु होय तो तेने बीजा ग्रहो रक्षण करवाने शक्तिमान "शनीज जेम मंगळ तथा बध पा सन्मख रहेखा अथवा जमणी तरफ रहेखा होय तो ते तजवा योग्य " एम त्रिविक्रम कहे . "बुध सन्मुख होय तो ज तेने तजवो” एम रत्नमाला नाष्यमां कडं . हवे वत्सचार कहे .वत्सः प्राच्यादिषूदेति कन्यादित्रित्रिगे रवौ। प्रवासवास्तुद्वारा प्रवेशाः संमुखेऽत्र न ॥ २० ॥ अर्थ-कन्या संक्रांतिश्री आरंजीने त्रण त्रण संक्रांतिमा रहेको सूर्य होय त्यारे पूर्वादिक चार दिशामां अनुक्रमे वत्स उदय पामे , एटले के कन्या, तुल अने वृश्चिक संक्रांति होय त्यारे पूर्व दिशामां वत्सनो उदय होय, धन, मकर अने कुंज संक्रांतिमां दक्षिण दिशाए, मीन, मेष अने वृष संक्रांतिमां पश्चिम दिशाए अने मिथुन, कर्क अने सिंह संक्रांतिमां उत्तर दिशाने विषे वत्सनो उदय होय . आ वत्स सन्मुख होय एवी रीते प्रवास (प्रयाण ) करवो नहीं, घर विगेरेनुं घार मूकवू नहीं, तथा जिनेश्वरादि प्रतिमानो धनिकना घरमा प्रवेश कराववो नहीं. नारचंड टिप्पणीमां वत्सनुं शरीर आ प्रमाणे कडं ."वपुरस्य शतं हस्ताः शृंगयुगं पष्टि संयुता त्रिशती। पन्नानिपुत्रशिरसां नूप १६ नव ए त्रि ३ शर ५ करमानम् ॥ १॥" "श्रा वत्सनुं शरीर सो हाथ उंचुंबे, तेनां बन्ने शींगमां ३६० हाथ लांबां ने, पग सोळ हाथ, नानि नव हाथ, पूंबहुं त्रण हाथ अने मस्तक पांच हाथ, वे." __ वत्सचार संबंधी विशेष ज्योतिषसारमां आ प्रमाणे कयुं बे."पंच १ दिक् तिथि ३ सत्रिंश ४ तिथि ५ दिक् ६ शर वासरान् । 'वत्सस्थितिर्दिक्चतुष्के प्रत्येकं सप्तनाजिते ॥ १॥" "चारे दिशामांनी प्रत्येक दिशाना सात सात नाग करवा. तेमां पहेला नागमां वत्सनी स्थिति पांच दिवसनी बे, बीजामां दश, त्रीजामां पंदर, चोथामां त्रीश, पांच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy