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________________ १५२ ॥ श्रारंसिद्धि (ते कोष्टक पण उपर श्राप्यु बे.)जे दिवसे जे दिशामां योगिनी होय ते दिशा, तथा ते दिशानी दक्षिण बाजुनी विदिशाना हाथमां कातर के तेथी ते विदिशा, तथा तेनी माबी बाजुनी विदिशाना हाथमां खपर ने तेथी ते विदिशा, या त्रणे दिशा युद्धादिकमां पारळ रही होय तो ज ते शुल बे. व्यवहारप्रकाशमां पण कयुं के “योगिनी देवी पृष्ठे दक्षिणवामे स्थिता विजयदात्री। संमुखसंस्था युधे पराजयं नाशमाधत्ते ॥ १॥" “योगिनी देवी पळवामे, दक्षिण बाजुए तथा माबी बाजुए रही होय तो ते युधमां विजयने श्रापनारी ने, अने सन्मुख रही होय तो ते पराजयने तथा मृत्युने आपे बे." गमनादिक कार्य अवश्यर्नु होय तो गमन वखते योगिनीनी मात्र दृष्टिने ज सन्मुख तजवी. तेनी सन्मुख दृष्टि नारचंघमां आ प्रमाणे कही जे. "ऊर्ध्व तिथिमित १५ नाड्यो दश चाघो १० वाम १० दक्षिणे १० पाच । घटिका पञ्चदशापि १५ च योगिन्याः संमुखी दृष्टिः॥१॥" “योगिनी ऊर्ध्व दिशामां पंदर घमी बे, अधो दिशामां दश घमी ने, वाम (माबी) बाजुए दश घमी, जमणी बाजुए दश घमी ने, अने सन्मुख दृष्टि पंदर घमी." वळी तत्काळयोगिनी पण अवश्य त्याग करवा लायक बे. ते तत्काळयोगिनी दिनशुधिमां आ प्रमाणे कही बे. "दिणदिसि धुरि चउघमिश्रा पुरत पुबुत्तदिसिसु अणुकमसो । तक्कालजोणी सा वोअवा पयत्तेणं ॥ १ ॥" “दिवसनी दिशामा प्रथमनी चार घमी योगिनी रहे , अने पनी अनुक्रमे पीनी दिशामां चार चार घमी रहे , ते तत्काळयोगिनीने प्रयत्नवमे वर्जवी, एटले केजे दिवसे जे तिथि होय ते तिथिनी जे दिशा कही होय ते दिशामां प्रातःकाळे चार घमी सुधी योगिनी रहे , अने त्यारपली उपर कहेला अनुक्रम प्रमाणे बाकीनी दिशाउमां योगिनी रहे . जेमके-एकमने दिवसे पूर्व दिशामां पहेली चार घमी ( अर्ध प्रहर ) योगिनी रहे बे, बीजी चार घमी उत्तरमां, त्रीजी चार घमी अग्नि खूणामां, ए रीते अनुक्रमे ईशान खूणा सुधी अर्ध अर्ध प्रहरो गणवा. बीजने दिवसे पहेलो अर्धप्रहर उत्तर दिशामां, बीजो अर्ध प्रहर अग्नि खूणामां, ए रीते गणतां श्राठमो अर्ध प्रहर पूर्व दिशामां श्रावे . ए प्रमाणे रात्रि दिवसमां श्रश्ने आवे दिशामां बबे वखत योगिनी फरे ने. ___ हवे पाश तथा काळy स्वरूप कहे .पाशो मासस्येष्टस्तिथिरष्टहृतावशिष्ट ऐन्यादौ । तत्संमुखस्तु कालः स तु दक्षिण एव सौख्याय ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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