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________________ ॥ चतुर्थी विमर्शः ॥ १९१ मां योगिनी होय . ते योगिनी जनार माणसने जे दिशामां जनुं होय ते तरफ जतां वा अथवा माबी बाजुए रहेती होय तो सारी, ने सन्मुख तथा जमणी बाजु श्रवती होय तो ते शुन जावी. वहीं परुवाथी रंजीने एक एक तिथि लेतां श्रवम सुधीमां एक आवृत्ति थाय ठे, बीजी प्रवृत्ति नोमथी लेतां पखवामीयाना अंत सुधी लइए तो सात ज तिथि रहे बे, अने दिशा तो श्राव बे, तो ते शी रीते करवुं ? तेनुं समाधान ए बे जे नोमश्री पूर्णिमा सुधीनी सात तिथि छाने वमी श्रमावास्यानी तिथि लेवी, तेथी पूर्णिमाए वायव्यमां ने अमावास्याए ईशानमां योगिनी होय. एम बीजी आवृत्तिमां पण दरेक दिशामा एक एक तिथि यावी जाय बे. पूर्णजय पण कहे वे के “पू १ २ ३ नै ४ द प ६ वा ७ई दिसिसु परिवर नवमी जोइपिश्रा । वायवि पुन्नमाए ईसाणे अमावसा तदा ॥ १ ॥” " पूर्व १, उत्तर 2, अग्नि ३, नैत्य ४, दक्षिण ए, पश्चिम ६, वायव्य 9 श्रने ईशान , ए व दिशामा अनुक्रमे परुथी छाने नोमथी तिथिने विषे योगिनी थाय बे, मां पूर्णिमा वायव्य खूणामां ने श्रमावास्याए ईशान खूणामां योगिनी श्रावे बे. " योगिनी कोष्टक दिशा | तिथि. १ - ए २-१० पूर्व उत्तर अग्नि नैर्ऋत्य दक्षिण पश्चिम वायव्य ईशान ३-११ ४-१२ Jain Education International ५- १३ ६-१४ १-१५ ८-३० दिशा. पूर्व दक्षिण पश्चिम उत्तर धो दिशि ऊर्ध्व दिशि मतांतरे योगिनीनुं कोष्टक. कृष्णपक्षी तिथि | शुक्लपक्षनी तिथि. १-६-११ १-६-११ २-१-१२ ३-८-१३ ४-०-१४ १० ५-१५ केटलाक श्राचार्यो या प्रमाणे योगिनी सुधी पूर्वादिक चार दिशामां योगिनी होय Tor नोम सुधी पूर्वादिक चार दिशा मां रथी चौदश सुधी पूर्वादिक चार दिशामां होय . एज रीते शुक्लपक्ष्मां पण जाणवुं. कहे बे-कृष्णपक्षनी एकमथी घोष बे, अने पांचमे ऊर्ध्व दिशामां होय बे, ने दशमे धो दिशामां होय बे, अगीयाने अमावास्याए ऊर्ध्व दिशामां योगिनी तफावत एटलो बे के शुक्लपक्षमां पांचमे धो दिशामां, दशमे ऊर्ध्व दिशामां ने पूर्णिमाए धो दिशामां योगिनी होय बे. २-१-१२ ३-८-१३ ४-९-१४ ५- १५ १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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