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॥ " नामछि॥
हवे साम्रीत कहे .व्ययनैधनसंशुधौ सद्दष्टापये।
सर्वारनेषु संसिधिश्चन्छे चोपचयस्थिते ॥२॥ बारमुं अने बाग्मुं स्थान शुद्ध होय ( कोश् ग्रहो न होय ) तथा इष्ट पुरुषना जन्मलग्नथी अथवा जन्मनी राशिथी उपचयस्थानमां एटले ३-६-१० अने ११ मा स्थानमां रहेली राशि लग्नमां रही होय तथा उपचयस्थानमां चंज रह्यो होय त्यारे श्रारंनेखां सर्वे शुल कार्यनी सिद्धि प्राय .
प्रायः शुला न शुलदा निधनव्ययस्था, धर्मान्त्यधीनिधनकेन्जगताश्च पापाः। सर्वार्थसिद्धिषु शशी न शुलो विलग्ने
सौम्यान्वितोऽपि निधनं न शिवाय लग्नम् ॥ २५॥ श्रापमा अने बारमा स्थानमा रहेला शुन ग्रहो पण प्राये करीने शुल फळने देनारा नथी, तथा नवमा, बारमा, पांचमा, थाउमा अने केंज (१-३-H-१०)स्थानमा रहेला क्रूर ग्रहो पण शुनदायक नथी.तथा चंज शुन ग्रहो सहित होय तो पण ते लग्नमां सर्व कार्यनी सिझमां शुनकारक नथी. तेमज थाउमुं स्थान लग्न होय एटले के श्ष्ट पुरुषनाजन्मसाथी अथवा जन्मराशिथी श्रापमुं लग्न होय तोते कोइ पण कार्यमा सेवा योग्य नथी.
___ हवे क्रूर कार्यने आश्रीने कहे बे.अनिचारविधिर्बलवांश्चन्छे क्रूरस्य योगवर्गस्थे।
रिपुनिधने लग्नस्थे रिष्टयोगे वुधे बलिनि ॥ ३० ॥ हणवाने श्छेला शत्रुना जन्मलग्नथी अथवा जन्मराशिथी श्रावमी राशि लग्नमां रही होय, रिष्ट योगमां बुध बळवान् होय अने चंगने क्रूर ग्रहनो योग होय अथवा क्रूर ग्रहना वर्गमां चंज रहेलो होय त्यारे अनिचारनो प्रयोग वळवान् (सिधिकारक) जे. इत्यादि.
श्रा घारनां सर्व कार्यामां जेटलां निरवद्य ( पाप रहित ) कार्यों बे, तेटलां कार्यो शुनने श्चता पुरुषोए आदरवा योग्य ने, अने जेटलां कार्यो धर्मने बाधा करनारां , तेटलां पापथी जय पामनार पुरुषोए त्याग करवा योग्य वे. तथा पाप व्यापारमा प्रवतेला पुरुषो पासे तेवां कार्योनी प्ररूपणा पण करवी नहीं.
इति कार्यघारम् । ॥ इति श्रीमति श्रारंसिधिवार्तिके कार्यपरीक्षात्मकस्तृतीयो विमर्शः॥३ १ मंत्रादिकना प्रयोगथी शत्रुनो नाश करवो ते.
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