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॥ तृती। मशः॥ रह्यो होय श्रने अशुन ग्रहो पुर्वळ होय त्यार वाव, कूवा, तळाव विगेरे जळाशयोनां कार्यों करवां शुज .
।इति जलाश्रयादि । २७
उकान मांझवार्नु मुहूर्त कहे .शुजदा यध्योमचरैः सौम्यैर्लग्नानवित्तलालगतैः ।
क्रूरैर्व्ययाष्टवर्ज विपणिः सेन्दौ सिते लग्ने ॥२४॥ सौम्य ग्रहो लग्नमां, दशमा, बीजा अने अगीयारमा स्थानमां होय, क्रूर ग्रहो बारमा के आवमा स्थानमां न होय अने चंड तथा शुक्र लग्नमां रह्या होय त्यारे नवी चुकान मांगवी शुजदायक .
।इति विपणिः। २८ धनने निधानमां मूक अथवा कोइने देवु ए विगेरे धनना प्रयोगर्नु मुहूर्त कहे जे.---
वित्तप्रयोगकालश्चरोदये पुत्रधर्मकेन्जेषु ।
शुनयुक्तेष्वथ निधने ग्रहरहिते शोलनः प्रोक्तः॥२५॥ चर लग्नमां पांचमुं, नवमुं अने केन्मस्थान शुल ग्रहोए युक्त होय श्रने बाग्मुं स्थान , ग्रह रहित होय त्यारे वित्त (धननो) प्रयोग (न्यासादिक ) शुल कह्यो .
इति वित्तप्रयोगः। एं हवे करीयाणांना क्रय विक्रयर्नु मुहूर्त कहे जे.दशमैकादशे लग्ने वित्तकेन्द्र त्रिकोणगैः ।
शुग्नैः पण्यस्य कर्मोक्तं वर्जयित्वा घटोदयम् ॥ २६ ॥ पोतानी जन्मराशिथी अथवा जन्मलग्नथी दशमे, अगीयारमे लग्ने, बीजे, केंछस्थाने अने त्रिकोण एटले नवमे तथा पांचमे स्थाने शुन ग्रहो रह्या होय त्यारे पएयनांक (करीयाणां )नो क्रय विक्रय शुक्ल ने, परंतु एक कुंन लग्ननो त्याग करवो. (कुंज खन्न न होवू जोश्ए.)
।इति क्रयविक्रयौ । ३० हवे रसना संग्रह करवा विषे तथा चोरी करवा विषे कहे जे.
चन्मोदये तदिवसे केन्जेज्ये रससंग्रहः ।
स्तेयस्य समयो लग्ने बुधे नौमे ननःस्थिते ॥ २७ ॥ लग्नमां चंज रह्यो होय अने गुरु केंस्थानमा रह्यो होय त्यारे रस ( घी, तेल विगेरे )नो संग्रह करवो शुनकारक . लग्नमां बुध होय अने दशमा स्थानमा मंगळ होय त्यारे चोरी करवायी लान थाय जे.
। इति रससंग्रह ३१ स्तेये ३२।
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