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________________ ॥ तृतीयो विमर्शः ॥ १६ दळना मस्तकनां त्रण, ए तेर नक्षत्रो खेतीना आरंभमां सारां बे. ( कुल श्रठ्यावीश नक्षत्र सेवानां बे.) "सांगल, दंशिका, यूप ने वे योत्र सहित हळने स्थापन करीने सूर्ये जोगवेखा ( जोगवीने मूकी दीधेला ) नक्षत्रथी आरंजीने अनुक्रमे नक्षत्रो मूकवां तेमां दंकिका, इळ ( लांगल ) ने यूप ए त्रणेना व बे बेमा उपर त्रण त्रण तथा बे योत्रमां पांच पांच नक्षत्रो मूकीने हळचक्रनी गणतरी करवी." श्रीं जरी मां सूर्य रहेलो होय त्यारे अश्विनी नक्षत्र जोगवेलुं ययुं, तेथी श्रश्विनीने आरंजीने दळचक्रनी स्थापना करी बे. दळचकनी स्थापन. 9 लागल रे उपू अ इंडिकार्नु मूळ भ इळचने स्थापन करवानी रीत या प्रमाणे बे. - " लांगलं दंगिका यूपं योत्रघयसमन्वितम् । दलं न्यस्य लिखेनानि रविणा मुक्त धिष्ण्यतः ॥ १ ॥ hare यूपानां दिव्यन्तेषु त्र्यं त्रयम् । योत्रयोः पञ्चके न्यस्य गणना चक्रलांगले ॥ २ ॥ " 市 पु पुअ Jain Education International यूप शधश्र 9 रो टू आ धनुं फळ नीचे प्रमाणे नरपतिजयचर्यामां कहां बे. "दकिकास्थे गवां दानिर्यूपस्थे स्वामिनो जयम् । लक्ष्मी लगिलयोत्रस्थे क्षेत्रारंभ दिनके ॥ १ ॥” १ चक्रमां १ ए शुभनी नीशानी छे अने० ए अशुभनी नीशानी छे, आ० २९ For Private & Personal Use Only योत्र, अउपूज्ये मपूउ हचि स्वाि www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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