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________________ ॥ तृतीयो विमर्शः ॥ मित्राप्ति १७ रम्बरहतिः १८ सलिलप्दुतिश्च १ए, रोगो २०ऽतिमिष्टमशनं २१ नयनामयश्च २५। धान्यं २३ विषोनवनयं २४ जलजी २५ र्धनं २६ च, रत्नाप्ति २७ रम्बरधृतेः फलमश्विनात् स्यात् ॥२॥" "नवां वस्त्र धारण करवामां अश्विनी नक्षत्रयी नीचे प्रमाणे अनुक्रमे फळ थाय ने. अश्विनी नक्षत्रमा वस्त्र धारण करे तो नाश पामेली वस्तुनी प्राप्ति थाय ने १. जरणीमां धारण करे तो तरत ज मरण पाय २, कृत्तिकामां अग्निदाह थाय ३, रोहिणीमां अर्थनी सिद्धि थाय ४, मृगशिरमां चंदरनो जय थाय ५, आ मां मरण थाय ६, पुनर्वसुमां धननी प्राप्ति , पुष्यमा अर्थनी (धननी) प्राप्ति , अश्लेषामां शोक ए, मघामां मृत्यु १०, पूर्वाफाल्गुनीमा राजानो लय ११, उत्तराफाल्गुनीमां संपत्तिनी प्राप्ति १२, हस्तमां कार्य सिद्धि १३, चित्रामा विद्यानी प्राप्ति १५, स्वातिमा सारु नोजन १५, विशाखामां माणसोनी प्रीति १६, अनुराधामां मित्रनी प्राप्ति १७, ज्येष्ठामां वस्त्रनी चोरी १७, मूळमां जळमां मुबे १ए, पूर्वाषाढामा रोग २०, उत्तराषाढामां अत्यंत मिष्ट जोजन २१, श्रवणमां नेत्रनो व्याधि २२, धनिष्ठामा धान्यनी प्राप्ति २३, शतनिषकमां विषनो नय २४, पूर्वानाजपदमां जळनोनय २५, उत्तरालाजपदमां धननी प्राप्ति २६, अने रेवतीमां नवं वस्त्र पहेरवाश्री रत्ननी प्राप्ति थाय ने २७." __व्यवहारप्रकाशमां कडं बे के-"केवळ श्वेत वस्त्रने माटे ज ा नियम नथी, पण रातां वस्त्रने माटे पण उपर गणावेलां ज नक्त्रो शुन बे." व्यवहारसारमा तो एम कडं बेजे-"रातां वस्त्र धारण करवामां पुरुषने पण जे नकत्रो स्त्रीउने माटे कहेवामां श्रावशे ते ज शुन, अने या उपर गणावेला नत्रो तो श्वेत वस्त्रने ज श्राश्रीने जे." हवे वारने आश्रीने आ प्रमाणे फळ जाणवू. "नवाम्बरपरीनोगे कुर्वन्त्यर्कादिवासराः। जीर्ण १ जलाई २ शोकं ३ च धनं । ज्ञानं ५ सुखं ६ मखम् ॥१॥" नवां वस्त्र धारण करवामां रवि विगेरे वारो अनुक्रमे जीर्ण १, जलाई २, शोक ३, धन ४, ज्ञान ५, सुख ६ अने मल ( मेलापणुं), श्रा प्रमाणे फळ आपे ." नवो कंबल धारण करवामां रवि पण शुक्ल ने एम कहेलुं . केटलाक श्राचार्यो कहे जे के "व्यापार्यते रवी पीतं बुधे नीलं शनौ शितिः। गुरुजार्गवयोः श्वेतं रक्त मंगलवासरे ॥१॥" १ वहेलु फाटी जाय. २ निरंतर भीनुं ज रहे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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