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________________ ॥ तृतीयो विमर्शः॥ १३ए श्रहीं सप्तम सप्तममा तथा त्रण अगीयारमा स्वामीनी मैत्रीनी चिंता (विचार ) करवानी नथी. दशम चतुर्थ (१-५) मां तो पहेला चारमा मैत्री बे, श्रने ना बेमां एक ज स्वामी ने, तेथी ए ए राशिकूट अत्यंत श्रेष्ठ जे. बीजा दशम चतुर्थनां गए कूट स्वनावधी ज श्रेष्ठ बे. तात्पर्य ए जे जे-प्रथम नक्षत्र योनि विगैरेनी शुद्धि बळवान् , तेनाथी राशिनुं वशपणुं बळवान् , तेनाथी पण राशिना स्वामी जे ग्रहो तेमनी मैत्री बळवान् , तेनाथी पण राशिउनी स्वानाविक मैत्री बळवान् बे. ते विषे कह्यु बे के "स्वनावमैत्री १ सखिता स्वपत्यो २ वशित्व ३ मन्योन्यजयोनिशुद्धिः ।। परः परः पूर्वगमे गवेष्यो हस्ते त्रिवर्गी युगपद्युतिश्चेत् ॥ १॥" "राशिनी स्वानाविक मैत्री, तेमना स्वामीउनी मैत्री, तेमनुं वशवर्तिपणुं तथा परस्पर नक्षत्र योनिनी शुद्धि, पूर्व पूर्वना अनावे पर परनी गवेषणा करवी, यथा स्वानाविक मैत्रीना श्रन्नावे तेमना स्वामीनी मैत्री, तेना अनावे वशवर्तिपणुं इत्यादिः जोएक साथे स्वालाविक मैत्री, तेमना स्वामीउनी मैत्री आदि होय तो धर्म, अर्थ अने काम त्रणे वर्ग तेना हाथमां जाणवा, परंतु तारामैत्री अने नामीवेध शुद्धि तो सर्वत्र जोवानी ज . केटलाएक नवीन गाममां वसवा माटे या प्रमाणे कहे . "जन्मराशिस्थितो ग्रामस्त्रिषष्ठः सप्तमोऽपि वा। स्वकीयो व्यनाशाय आपदा च पदे पदे ॥१॥ चतुर्थोऽष्टमको ग्रामो बादशो यदि वा नवेत् । यत्रैवोत्पद्यते अर्थस्तत्रैवार्थो विलीयते ॥ २॥ पञ्चमो नवमो ग्रामो वितीयो यदि वा नवेत् । दशमैकादशश्चैव शुलदः स फलप्रदः ॥३॥" "पोतानी जन्मराशिमा रहेल ग्राम तथा जन्मराशिथी त्रीजे, बठे के सातमे होय तो व्यनो नाश थाय तथा मगले मगले आपत्ति प्राप्त थाय. जन्मराशियी चोथे, बाउमे के बारमे जो होय तो अर्थ ज्यां पेदा थाय त्यांज नाश पामे. नवमे, बीजे, दशमे के अगीयारमे शुजकारी फळनो आपनार बे. हवे तारा कहेवी जे. तेमां प्रथम तेनी साथे संबंध होवाथी नामीवेध कहे . चक्रे त्रिनाडिके धिष्ण्यमेकनाडिगतं शुनम् । गुरुशिष्यवयस्यादेने वधूवरयोः पुनः ॥२४॥ अर्थ-त्रण नामीवाळा चक्रमां एक नामीमा रहेलु नत्र होय ते गुरु शिष्यने तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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