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________________ प्रस्तावना. रामाफिरोजशाह तुघलके घणुं मान छाप्पु हतुं. प्रा सूरीश्वरे श्रीपाळचरित्र, गुणस्थ समारोह अने लघुक्षेत्रसमास विगेरे अनेक ग्रंथो रचेला . एम जैन धर्मना प्राचीन हासमां यापेखें . तेमज जैन ग्रंथावळीमां पृष्ठ १३२ मां गुणस्थानकमारोहना क रत्नशेखर सूरि लखेला अने रच्यानो संवत् १४४ नो डे तथा पृष्ठ २३४ मां श्रीप चरित्रना कर्ता पण तेज लख्या . तेनो संवत् १४२० लख्यो . ते सिवाय बीजा ग्रं पण था सूरिना रचेता हशे के नहीं तेनो निश्चय यश् शकतो नथी, कारण के गुरुगु पत्रिंशिका वृत्तिना रचनार रत्नशेखर सूरि ग्रंथावळीना पृष्ठ १४० मां सख्या बे, । तेनो संवत् विगेरे कां पण नहीं होवाथी बेमांथी कया सूरि आना कर्ताले ते । थइ शकतुं नथी. तथा पृष्ठ १७ मां गुरुगुणपत्रिंशिका कुलक उपर दीपिका नाम टीकाना कर्ता रत्नशेखर सूरि खख्या बे, तेमां पण संवत् लखेलो नथी, परंतु ते फटनोटमां नागपरीय शाखाना हेमतिलक सरिना शिष्य अने वज्रसेन सरिना प्र तथा श्रीपाळचरित्रना कर्ता खखेला होवायी था प्रकृत सूरि मालम पमे .विगेरे. विरे श्रा दिनशुद्धि ग्रंथ पण संक्षिप्तज ने एटले के तेमां १४४ गाथा . श्रा ग्रंथ पण नानी मोटी टीका बे के नहीं ते उपलब्ध थयुं न होवाथी मात्र मूळ ग्रंथज नाषां सहित प्रगट कर्यो बे, तोपण केटलेक स्थळे स्पष्ट समजुतीने माटे प्रतिमां नहीं है यंत्रो दाखल कर्या . आ ग्रंथमां वार, तिथि, करण, नक्षत्र, ताराबळ, योगो, प्रय चैत्य करणादिक, मृतक्रिया, दीक्षा, प्रतिष्ठा विगेरेनां मुहूर्तों तथा खोच, विद्यारंज वि विषयो सीधा . एकंदर था लघु ग्रंथ उतां पण अति उपयोगी जे. आ ग्रंथना विस्त विषयो पण अनुक्रमणिकामां दाखल करेला होवाथी अत्रे विस्तारता नथी. बेवट था ग्रंथोना जिज्ञासु जनोने या ग्रंथना सऽपयोगमा प्रवृत्ति अने दुरुपयोग निवृत्ति करवानी सूचना प्रापी आ प्रस्तावना समाप्त करयामां आवे छे भने याशी आपीए बीए के आ ग्रंथोमां बतावेलां शुज कार्योनां शुल मुहूर्तोंने सीधे शुन्न फळ प्र करी सजानो श्रानंद पामो. इति शम् । तथाऽस्तु ॥ वृत्ति, श्राद्धविधि वृत्ति तथा आचारप्रदीप विगेरे ग्रंथो रच्या छे. आ सूरिना गुरु श्रीमुनिसुंदर र हता. आ उपरथी आ बन्ने सूरि भिन्न छे एम सिद्ध थाय छे, अने उपर लखेला ग्रंथावळीना आ पण जूदा सिद्ध थाय छे, केमके ग्रंथावळीना पृष्ठ ९६ मां लक्षणसंग्रहना कर्ता रत्नशेखर लख्या छ, मीचे फुटनोटमां संवत् १५०२ थी १५१७ नो सत्तासमय लख्यो छे. (आ सूरिपदनो सत्तासम आणवो.) तोपण ग्रंथावळीमां रत्नशेखर नामना एकज सूरि थया होय एम धारीने लखेलु जणाय : परंतु बन्ने भिन्न मानवा योग्य छे. संवत् १७४ आषाढ पूर्णिमा. { ली. प्रकाशक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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