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________________ प्रस्तावना. जापांतरज सरळ रीते लख्यु के. मात्र कोक स्थळेज टीकाकारना संक्षिप्त अने प्रदर्शन करेखा विषयने स्पष्ट समजाववा माटे योमोक विस्तार नापांतरमां कर्यो के. श्रा ग्रंथनुं तेमज नीचे लखेला लग्नशुद्धि तथा दिनशुद्धि नामना ग्रंथोनुं नाषांतर वनगरनिवासी शेठ कुंवरजी आणंदजी मारफत शास्त्री जेठालाल हरिभाइ से कराव्यु बे. तेमा प्रवर्तक महाराज श्रीकांतिविजयजीना शिष्य मुनिराज श्रीभक्तिजयजी महाराजे सारी मदद थापी . तथा था नाषांतरचें मेटर अने उपातां रमो साद्यंत तपासी आपनार पन्यासजी महाराज श्रीदानविजयजी महाराजाए घणी । करी बे. तेमज या ग्रंथनी परम शुद्ध एक प्रति पूज्यपाद श्रीविजयानंद सूरीश्वर प्रात्मारामजी महाराज)नी तथा बीजी तेमनाज प्रशिष्य उपयुक्त मुनिवर श्रीलक्तिजयजी महाराजनी मळी हती, जेथी था स्थळे ते सर्व पूज्योनो अमो अंतःकरणक आजार मानीए बीए. या ग्रंथ पूर्ण श्रया बाद पाबळ लग्नशुद्धि तथा दिनशुद्धि के जे मात्र मूळज उपध थया ने ते पण नाषांतर सहित पाव्या . जो के श्रा बन्ने ग्रंथो अति लघु वाथी श्रारंसिद्धि करतां वधारे उपयोगी नथी, तोपण तेमांथी केटलांक चालतां ? सहेलाथी टप प्रयासे मळी शके तेम , तथा को कोई नवीन विषयो पण ', तेथी था बे ग्रंथो कायमने माटे वधारे उपयोगी होवाथी तेमनुं प्राकट्य उरस्त र्यु जे. ते बन्ने ग्रंथोमां कया कया विषयो बे, ते माटे जिज्ञासुए अनुक्रमणिका वांचीनेज ज्ञासा पूर्ण करवी. थामांनो लग्नशुद्धि नामनो ग्रंथ १४४४ ग्रंथना कर्ता श्रीहरिभद्र सूरि के जेओ केनीमहत्तरासूनुना नामथी प्रसिद्ध ने तेमणे रचेलो . तेमां मात्र १३३ गाथा कत नाषामांज , तोपण अटप शब्दोमां प्रजूत अर्थनो समावेश होवाथी सूत्ररूपे ग्रंय . था ग्रंथमा मात्र लग्ननीज शुद्धि, तेमां पण दीदा, उपस्थापना अने प्रतिसांज खग्न विषे बे. या ग्रंथ पर नानी मोटी टीका के नहीं? ते विषे का निश्चय थयो . था ग्रंथकार पूज्यपादनो संपूर्ण इतिहास तथा तेमनुं माहात्म्य सुप्रसिद्ध होवाश्री कवर्गना समयनो व्यर्थ व्यय करवा श्चता नथी. देनशुद्धि ग्रंथना कर्ता श्रीहेमतिलक सूरिना शिष्य श्रीरत्नशेखर सूरि जे. एम ग्रंथनी । गाथामा स्पष्ट खखेलुं बे. तेनो सत्तासमय संवत् १४२० मां हतो. तेमने दिटहीना १ आ नामना बीजा श्रीरत्नशेखर सूरि आ सूरिनी पछी एटले संवत् १४५७ मां जन्म, त् १४६३ मां दीक्षा, संवत् १५०२ मां सूरिपद अने १५१७ मां पोष वदि छठने दिवस स्वर्ग। विगेरे जैन धर्मना प्राचीन इतिहास उपरथी थयेला जणाय छे. ते सूरीश्वरे श्राद्धप्रतिक्रमण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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