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॥ वितीयो बिमर्शः॥
एए "जेवा चंवमे सूर्यनी संक्रांति थती होय ते मासमां मनुष्योने तेवा प्रकारचें शुजा. शुन फळ थाय ने एम कहे ."
साथी करीने कदाच सूर्य बारमा, थाउमा विगेरे श्रशुल स्थानमा रह्यो होय तोपण गोचरवमे, ताराबळवमे तथा शुल्न अवस्था दिके करीने शुल एवा चंजनुं बळ होय त्यारे तेनी संक्रांति थर होय तो ते शुज ज . एम रत्नमाला नाष्यमां कडं .
तथा दक्ष कहे जे के"सितपक्षादौ चन्छे शुने शुनः पक्षकोऽशुने त्वशुलः।
बदुखे गोचरशुनदे न शुनः पदोऽशुने तु शुलः ॥१॥" “शुक्लपक्षना प्रारंजमां एटले प्रतिपद् बेसे ते वखते जो चंग शुल होय तो ते श्रा पखवामीयुं शुल जाणवू, अने जो चंग अशुल होय तो आखा पक्षने अशुन जाणवो. कृष्णपक्षमां तो प्रतिपदनी शरुवातमां जो चंड शुन्न होय तो ते श्राखा पक्ष्ने श्रशुल जाणवो, अने जो चंग श्रशुल होय तो श्राखा पक्षने शुन जाणवो."
तथा “यादृशेन ग्रहेणेन्दोयुतिः स्यात्तादृशो हि सः" "जेवा ग्रहनी साथे चंजनो योग होय, तेवा ज ग्रहनी जेवो ते चंज थाय ने." एम दैवज्ञववनमां कहुं ने, तथा दैवज्ञवननमा ज कई ने के
"अशुनोऽपि शुलश्चन्छः सौम्यमित्रगृहांशके।
स्थितोऽथवाधिमित्रेण बलिष्ठेन विलोकितः ॥१॥" ___ "अशुल चंज पण सौम्य ग्रहना के मित्र ग्रहना स्थानना नवांशमा रह्यो होय तो ते शुल के. श्रथवा बळवान् अधिक मित्रे जोयेलो होय तोपण ते चं बळवान् जे."
सर्व ग्रहोगें साधारण फळ दैवज्ञवसनमां था प्रमाणे - "असत्फलोऽपि यः सौम्यैदृष्टो यः सत्फलोऽपि वा ।
क्रूरेण दृष्टोऽरिणा वा स न किश्चित्फलप्रदः॥१॥" “जे को अशुन फळदायक ग्रह सौम्य ग्रहे जोयेसो होय, अथवा जे कोश् शुल फळवाळो ग्रह क्रूर ग्रहे श्रथवा शत्रु ग्रहे जोयेलो होय, ते ग्रह कांइ पण फळने देनारो नथी." - पक्ष कहे जे के-"नीचेऽस्तेऽरिगृहे वापि निष्फलो ग्रहगोचरः" "नीचमां, अस्तमां के शत्रुना घरमा रहेखो ग्रहगोचर निष्फळ ."
हवे चन्गोचर फळ कहे जे. चन्मो जन्म त्रिषट्सप्तदशैकादशगः शुनः। छिपश्चनवमोऽप्येवं शुक्लपके बली यदि ॥४५॥
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