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________________ ॥ द्वितीयो विमर्शः॥ अर्थ-रवि श्रने चंड़ ए वे ग्रहो उत्तरायणमां वळवान् ने, एटले के मकर विगेरे उ राशिमां बळवान् , पण कर्क विगेरे ब राशिमां वळवान् नथी, अने बीजा पांच ग्रहो विपुल, स्निग्ध अने वक्र गतिवाळा होय त्यारे ते बळवान् वे. विपुल एटले घणा दिवसथी उदय पामेला अने विशाळ स्थूळ बिंबवाळा होय, पण बाळक, वृक्ष के अस्त पामेला न होय. यहीं उदय थया पली ग्रहोगें बाळपणं कहेवायचे, अने अस्त थया पहेलां वृद्धत्व व वाय . सप्तर्षि कहे जे के“बाट्यावस्थामां तथा वृक्षावस्थामां सर्वे ग्रहो सात सात दिवस निर्बळ होय .” वळी ते पांचे ग्रहो स्निग्ध होय एटले के स्पष्ट किरणवाटा अर्थात् आकाशमां देखाता होय, आ स्निग्धपणुं सूर्यश्री अत्यंत पूर होय त्यारे होय . वळी ते पांचे ग्रहो वक्र गतिवाळा होय तो ते बळवान् होय . पाकश्री ग्रंथमां कडं बे के "वक्र गतिमां सर्वे ग्रहोर्नु बळ मूळ त्रिकोणनी जेटलुं होय .” परंतु हर्षप्रकाशमां तो एवं कडं वे के–“वक्की पावो बली सुनो सिग्घो" "वक्री थयेलो बळवान् ग्रह मुष्ट , अने स्निग्ध बळवान् ग्रह शुज जे." मंगळ विगेरे पांचे ग्रहोनी गति प्रश्नशतक वृत्तिमा या प्रमाणे बे. "सूर्यनु(मुक्ता उदीयन्ते शीघ्रा अर्के दितीयगे। समं तृतीयगे यान्ति मन्दा नानौ चतुर्थगे ॥१॥ वक्राः पञ्चमषष्ठेऽर्के तेऽतिवका नगाष्टगे। नवमे दशमे मार्गाः सरला साल ११ रिष्यगे १२ ॥॥" "सर्वे (पांचे ) ग्रहो सूर्ये लोगव्या पठी एटले सूर्यथी बूटा थया पठी उदय पामे ने, सूर्य बीजी राशिमां जाय त्यारे ते शीघ्र गतिवाळा थाय , सूर्य त्रीजे स्थाने होय त्यारे ते सम गति करे , सूर्य चोथे होय त्यारे मंद गतिवाळा होय बे, सूर्य पांचमे तथा उठे होय त्यारे ते वक्र गतिवाळा होय जे, सूर्य सातमे अने आपमे होय त्यारे ते शति वक्र गतिवाळा होय बे, सूर्य नवमे अने दशमे होय त्यारे ते मागेर ने, तथा सूर्य अगीयारमे अने बारमे होय त्यारे ते सरल गतिवाळा (सीधा) होय जे." अहीं सूर्य पांचमे बछे होय एम जे कर्तुं ते शनि, मंगळ अने गुरुने आश्रीने कर्तुं , केमके बुध अने शुक्र तो सूर्यनी समीपे रहीने ज वक्र श्राय . ए ज रीते मार्गगामीमां, पण जाणवू. एटले के शनि, मंगळ अने गुरुने आश्रीने ज जाणं. श्राकाशमां एक ज नक्षत्रना पादमां परस्पर तारा अने ग्रहनो जे योग श्रवो ते युद्ध कहेवाय बे. तेथी करीने युष्मां सूर्य रहित अने चंड सहित एवा सर्वे ग्रहो उत्तरमा गति करनारा होय तो ते चेष्टाए करीने बळवान् बे. एटले के उत्तर गामी ग्रहोनो जय भाय ने माटे ते बळवान् , अने दक्षिण गामीनो पराजय श्राय ने माटे ते निर्बळ बे. थाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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