SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ द्वितीयो विमर्शः॥ ११ कुंन राशिमां धनिष्ठा जेतुं अधु, शततारका तथा पूर्वाजापदनां प्रथम त्रण पाद. १२ मीन राशिमा पूर्वानापदनुं बेधुं एक पाद, उत्तरालाप्रपद अने रेवती. राशिनी व्यवस्थामा अनिजित् नक्षत्र सेवानुं नथी, तेथी सत्यावीश नत्रोने विषे दरेकनां चार चार पाद होवाथी कुल एकसो ने श्राप पाद थाय , ते पाद अदरोना नियम कहेवावमे प्रथम सूचवन कर्या . तेमांनां नव नव पादोए करीने एक एक राशि थाय जे. एम बार राशि कहेली, तेथी करीने पुरुषादिकनां नाम पामवामां राशिनी कटपनाए नक्षत्रना पादमां नियत करेला वर्णो (अदरो)ने जाणीने नामादिकना अक्षरो करवा. (तेवा अदरथी शरु श्रतुं नाम पामवं.)अनिजित् नक्षत्रनां त्रण पादना अक्षरो उत्तराषाढाना बेला ( चोथा ) पादमां अंतर्गत थाय , अने अनिजितना बेझा पादना अदरो श्रवणना प्रथम पादमां अंतर्गत थाय . ____ हवे मेषादिक बार राशिउंना वर्ण कहे जे.मेषाछोणार्जुनद रिक्तश्वेतैतमेचकाः। पिंगपिंगलकल्माषकमालमलिना रुचः॥७॥ अर्थ-मेषधी आरंजीने शोण (रातो), अर्जुन (श्वेत ), हरित (पीळो-सीखो), रक्त (रातो), श्वेत, एत ( काबरचित्रो), मेचक ( काळो), पिंग (पीको-रातो,) पिंगल ( पीळो-रातो), कटमाष (काबरचित्रो), कमाल (पीळो) अने मलिन (मत्स्यनी जेवो मेलो), श्रा प्रमाणे बारे राशिऊंना वर्ण जाणवा. था वर्ण कहेवार्नु प्रयोजन विशेषे करीने नवांशमां आवशे ते एवी रीते के धातु,मूळ तथा जीवरूप पदार्थ नवांशथी ज जणाय . कह्यु के-"अंशकाज्ज्ञायते जयं” “नवांशथी व्यर्नु ज्ञान थाय ते." तेथी करीने धातु अने मूळ विगेरे वस्तु चोराश होय अथवा खोवाइ होय, तेना प्रश्नमां श्रा वर्णवमे ते वस्तुना वर्षेनुं ज्ञान थाय . . हवे राशिनां स्वरूप कहे .उद्यद्घोषवतीगदं नृमिथुनं नौस्थाऽग्निसस्यान्विता, कन्या ना च तुलाधरो धृतधनुर्धन्व्यश्वपश्चार्धकः । एणास्यो मकरः कुटांकित शिराः कुंनो विलोमाननं, मीनो मीनयुगं च नामसदृशाः प्रोक्ताः परे राशयः ॥७॥ अर्थ-जेना हाथमां वीणा ने एवी स्त्री तथा जेना हाथमां गदा ने एवो पुरुष ए बन्ने सामसामां बेगं होय ते मिथुन राशिनो श्राकार जाणवो. मावा हाथमां अग्नि श्रने जमणा हाथमां धान्य धारण करीने वहाणमां बेठेली कन्याने आकारे कन्या राशि के, हाश्रमां आ०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy