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मृत शरीर (कलेवर) 12. स्त्री-पुरुष का संयोग समय 13. गंदे पानी की नालियाँ आदि में तथा 14. अन्य अशुचि स्थानों में। उक्त 14 वस्तुएँ जब मनुष्य शरीर में से अलग होती है तब अन्तर्मुहूर्त समय में उनमें असंख्यात समूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं तथा अपर्याप्त अवस्था में ही मर जाते हैं। इनके 101 अपर्याप्त भेद ही होते है। इस प्रकार तीनों प्रकार के 101-3-303 भेद मनुष्यों के होते हैं।
देवों के भेद देवों के मुख्य भेद 4
भवनपति
व्यंतर
ज्योतिषी
वैमानिक
1. भवनपति के भेद 25
10
15
25
2. व्यंतर के भेद 26
26
3. ज्योतिषी के भेद 10
भवनपति परमाधामी कुल भेद व्यंतर वाण व्यंतर तिर्यक जंभृक कुल भेद स्थिर (मनुष्य लोक के बाहर) अस्थिर (मनुष्य लोक में) कुल भेद देवलोक ग्रैवेयक लोकान्तिक अनुत्तर विमान किल्विषिक (अधम जाति के देव)
4. वैमानिक के भेद 38
कुल भेद
38
देवों के 198 भेद
भवनपति व्यंतर ज्योतिषी वैमानिक योग
38
99
99 पर्याप्ता+ 99 अपर्याप्ता = 198
देवता का अर्थ है जो विशिष्ट शक्तियों से संपन्न हो। देवताओं में कुछ जन्मजात विशेषताएँ होती है - जैसे उनका वैक्रिय शरीर। इस शरीर में वे चाहे जैसा छोटा-बड़ा एवं सूक्ष्म-स्थूल रूप बना सकते हैं। तीव्र
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