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नव तत्त्व बोध : सागर और नाव का दृष्टान्त
मुसाफिर
7. निर्जरा
ज्ञेय
हेय
4. पाप
1. जीव
प्रतिकूल
पवन
पानी निकालना
मिथ्यात्व
शरीर
अव्रत
कर्मरूप पानी का संबंध
2. अजीव
नाव
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5. आसव
प्रमाद योग
नाव में छेद
8. बंध
अनुकूल पवन
6. संवर
सकल कर्मक्षय
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3. पुण्य
: जीव अजीव ज्ञेय हैं। सभी जीवों के प्रति दयाभाव रखना, रक्षा करना, अजीव के प्रति उदासीन बने रहना ।
: पाप आस्रव और बंध तत्त्व हेय है। ये अनंत दुःखदायी त्यागने योग्य होने से उनके प्रति अरुचि भाव पैदा करना और उनका त्याग करना। उपादेय : पुण्य-संवर-निर्जरा और मोक्ष उपादेय हैं। इन्हें आत्मा को सुख देने वाले समझकर इन क्रियाओं में सतत प्रयत्नशील रहना ।
छेद बंद करना
9. मोक्ष