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________________ नाम व्याख्या तत्त्व ज्ञेय जानने योग्य जीव, अजीव य छोड़ने योग्य पाप, आश्रव, बंध उपादेय ग्रहण करने योग्य पुण्य, संवर, निर्जरा, मोक्ष ऐसे तो सभी तत्त्व जानने योग्य हैं, परंतु जीव और अजीव यह दो तत्त्व सिर्फ जाने जा सकते हैं लेकिन इनका त्याग अथवा ग्रहण नहीं किया जा सकता। इसलिए ये दोनो तत्त्व ज्ञेय माने गये हैं। सात तत्त्वों की जानकारी प्राप्त कर, हेय का त्याग करना चाहिए तथा उपादेय तत्त्वों को जीवन में अपनाना चाहिए। रूपी और अरूपीः रुपी वह है जिसमें वर्ण, गंध रस और स्पर्श हो। जिसमें इनका अभाव हो, वह अरुपी है। नव तत्त्वों में जीव अरुपी है। यहाँ जीव का अभिप्राय आत्मा से है, शरीर से नहीं । मोक्ष भी अरुपी है। अजीव के पांच भेद है, धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल । धर्म, अधर्म, आकाश, और काल ये चारों अरुपी है और एक मात्र पुद्गल रुपी है। आश्रव, बन्ध, पुण्य, पाप भी रुपी हैं। संवर, निर्जरा, मोक्ष ये जीव के ही शुभ-शुद्ध अवस्था स्वरूप होने से वह अरूपी हैं। नोट : रूपी को मूर्त और अरूपी को अमूर्त भी कहा जाता हैं। Jain Education International 45 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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