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________________ वे ये हैं - 1. धूलवृष्टि की 2-3. वज्रमुखी चींटियों और डांसों से शरीर चूंटा 4. घीमेलिका ने शरीर खाया 5. बिच्छुओं ने डंक मारे 6.सों ने डसे 7. नोलियों ने नखों से शरीर चूंटा 8. चूहों ने काटा 9-10. हाथी-हथनियों ने आकाश में उछाले और पैरों से मर्दन किया। 11. पिशाच रूप से डराये 12. व्याघ्रों ने फाल मार कर भयभीत किया। 13. माता के रूप में आकर कहा-पुत्र! क्यों दुःखी होता है, मेरे साथ चल तुझे सुखी करूंगी। 14. कानों पर पक्षियों के तीखे चुभते हुए पीजरे बांधे। 15. जंगली चाण्डाल ने आकर दृष्ट वचनों से तिरस्कार किया। 16. दोनों पैरों पर अग्नि जलाकर हण्डी में खीर पकाई। 17. अत्यंत कठोर पवन चलाया। 18. ऊंचे वायु से शरीर को उठा उठाकर नीचे पटका और गोल वायु से शरीर को चक्र जैसा घुमाया। 19. एक हजार भार प्रमाण लोहे का गोला भगवान के मस्तक पर पटका, इससे प्रभु कमर तक जमीन में | उतर गये, तीर्थंकर का शरीर होने से कुछ भी नहीं बिगड़ा, दूसरे का होता तो शरीर चूर-चूर हो जाता। 20. रात्रि होने पर किसी ने आकर कहा-हे आर्य! प्रभात हो गया है, विहार करो, अब तक क्यों ठहरे हो? भगवान ने अपने ज्ञान से रात्रि है ऐसा जान कर इसको चरित्र माना और कुछ भी उत्तर नहीं दिया - फिर देव ने अपनी ऋद्धि दिखा कर कहा-हे आर्य! वर मांगों, तुमको स्वर्ग चाहिये तो स्वर्ग दं और देवांगना चाहिये तो देवांगना दूं, जो चाहिये सो मांग लो-इन बीस उपसर्गों से भगवान तनिक भी चलायमान न हुए। तत्पश्चात् सारे गांव में आहार अशुद्ध कर दिया, चोर का कलंक दिया, कुशिष्य बनकर घर-घर भगवान के छिद्र देखता और लोगों के पूछने पर कहता - मेरे गुरु रात को चोरी करने आवेंगे, इसलिए में तलाश करता फिरता हूं, यह सुन लोग भगवान को मारकूट करते, तब भगवन्त ने यह अभिग्रह धारण किया कि जब तक उपसर्ग शमन न हो तब तक मैं आहार ग्रहण न करूंगा, इस तरह दुष्ट-धृष्ट निर्लज्ज संगम ने पैशाचिक वृत्ति से छः मास तक जगत के तारणहार को उपसर्ग दिये। संगम ने अवधिज्ञान से देखा कि महावीर के परिणाम कुछ भग्न हुए हैं या नहीं? महावीर के परिणाम उतने ही विशुद्ध थे, जितने छह मास पूर्व। वे छह जीवनिकाय के सभी जीवों का हित चिंतन कर रहे हैं। यह देख संगम प्रभु महावीर के चरणों में गिरा और बोला-भगवन! इन्द्र ने जो कहा, वह सत्य है। मैं भग्नप्रतिज्ञ हूं। आप यर्थाथ प्रतिज्ञ हैं। मैंने जो कुछ किया, उस सबके लिए क्षमायाचना करता हूं। भंते! मैं अब उपसर्ग नहीं करूंगा। इंद्र को इस बात का बड़ा दुःख था, मगर संगम को इसलिये नहीं रोका कि वह यह सिर जोरी करेगा कि मैं 34 AAAAAAE3948 Romeducatuninterinaugurate H omemastram
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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