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________________ सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है... अगर तुम्हारा पात्र भीतर से बिल्कुल शुद्ध है, निर्मल है, निर्दोष है, तो जहर भी तुम्हारे पात्र में जाकर निर्मल और निर्दोष हो जाएगा / और अगर तुम्हारा पात्र गंदा है, कीड़े - मकोड़ों से भरा है और हजारों साल से जिंदगी की गंदगी इकठी है- तो अमृत भी डालोगे तो जहर हो जाएगा / सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है। अंततः निर्णायक यह बात नहीं है कि जहर है या अमृत, अंततः निर्णायक बात यही है कि तुम्हारे भीतर स्थिति कैसी है। तुम्हारे भीतर जो है, वही अंततः निर्णायक होता हैं। ___ तुम जैसा जगत को स्वीकार कर लोगे, वैसा ही हो जाता है / यह जगत तुम्हारी स्वीकृति से निर्मित है / यह जगत तुम्हारी दृष्टि का फैलाव है / तुम जैसे हो, करीब-करीब यह जगत तुम्हारे लिए वैसा ही हो जाता है। तुम अगर प्रेमपूर्ण हो तो प्रेम की प्रतिध्वनि उठती है / और तुमने अगर परमात्मा को सर्वांग मन से स्वीकार कर लिया है, सर्वांगीण रुप से - तो फिर इस जगत में कोई हानि तुम्हारे लिए नहीं है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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