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७६ : जैन भाषादर्शन उदाहरण के लिए 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर था' और 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर है' इन दोनों वाक्यों में बनारस शब्द का वाच्यार्थ भिन्न-भिन्न है। एक भूतकालीन बनारस की बात कहता है तो दूसरा वर्तमान कालोन । इसी प्रकार 'कृष्ण ने मारा' और 'कृष्ण को मारा' इन दोनों शब्दों में कृष्ण का वाच्यार्थ एक नहीं है। कृष्ण ने मारा'-इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ कृष्ण नामक वह व्यक्ति है जिसने किसी को मारने की क्रिया सम्पन्न की है। जबकि 'कृष्ण को मारा'-इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ वह व्यक्ति है जो किसी के द्वारा मारा गया है। शब्दनय हमें यह बताता है कि शब्द का वाच्यार्थ कारक, लिंग, उपसर्ग, विभक्ति, क्रिया-पद आदि के आधार पर बदल जाता है।
समभिरूढ़नय-भाषा की दृष्टि से समभिरूढ़नय यह स्पष्ट करता है कि अभिसमय या रूढ़ि के आधार पर एक ही वस्तु के पर्यायवाची शब्द यथा-नृप, भूपति, भूपाल, राजा आदि अपने व्युत्पत्यार्थ की दृष्टि से भिन्न-भिन्न अर्थ के सूचक हैं । जो मनुष्यों का पालन करता है, वह नृप कहा जाता है । जो भूमि का स्वामी होता है, वह भूपति होता है। जो शोभायमान होता है वह राजा कहा जाता है। इस प्रकार पर्यायवाची शब्द अपना अलग-अलग वाच्यार्थ रखते हए भो अभिसमय या रूढ़ि के आधार पर एक ही वस्तु के वाचक मान लिये जाते हैं, किन्तु यह नय पर्यायवाची शब्दों यथा-इन्द्र, शक्र , पुरन्दर में व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थ-भेद मानता है।
एवंभूतनय-एवंभूतनय शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण मात्र उसके व्युत्पत्तिपरक अर्थ के आधार पर करता है। उदाहरण के लिए कोई राजा जिस समय शोभायमान हो रहा है उसी समय राजा कहा जा सकता। एक अध्यापक उसी समय अध्यापक कहा जा सकता है जब वह अध्यापन का कार्य करता है। यद्यपि व्यवहार जगत् में इससे भिन्न प्रकार के ही शब्द प्रयोग किये जाते हैं। जो व्यक्ति किसी समय अध्यापन करता था अपने बाद के जीवन में वह चाहे कोई भी पेशा अपना ले 'मास्टर जी' के ही नाम से जाना जाता है। इस नय के अनुसार जातिवाचक, व्यक्तिवाचक गुणवाचक, संयोगी-द्रव्य-शब्द आदि सभी शब्द मूलतः क्रियावाचक हैं। शब्द का वाच्यार्थ क्रिया शक्ति का सूचक है। अतः शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण उसकी क्रिया के आधार पर करना चाहिए।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन आचार्यों का नय-सिद्धान्त यह प्रयास करता है कि पर वाक्य प्रारूपों के आधार कथनों का श्रोता के द्वारा सम्यक् अर्थ ग्रहण किया जाय । वह यह बताता है कि किसी शब्द अथवा वाक्य का अभिप्रेत अर्थ क्या होगा। यह बात उस कथन के प्रारूप पर निर्भर करती है जिसके आधार पर वह कथन किया गया है। नय-सिद्धान्त यह भी बतलाता है कि कथन के वाच्यार्थ का निर्धारण भाषायी संरचना एवं वक्ता को अभिव्यक्ति शैली पर आधारित है और इसीलिए यह कहा गया है कि जितने वचन पथ हैं उतने ही नयवाद हैं । नय-सिद्धान्त शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण ऐकान्तिक दृष्टि से न करके उस समग्र परिप्रेक्ष्य में करता है जिसमें वह कहा गया है । १. पर्यायशब्देषु निरुक्तिभेदेन भिन्नमर्थ समभिरोहन समभिरूढ़ः। -जैनतर्कभाषा, नयपरिच्छेद पृ० ६२ २. शब्दानां स्वप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाविष्टमर्थ वाच्यत्वेनाभ्युपगच्छन्नेवम्भूतः ।
-जैनतर्कभाषा नयपरिच्छेद पृ०६२ ३. वही
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