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३८: भाषादर्शन
जैन दार्शनिकों ने इन दोनों ही प्रकार के सिद्धान्तों को एकांगीरूप से ग्रहण नहीं किया अपितु यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि शब्द और उनके वाच्यार्थ का निर्धारण किसी भी एकान्तिक अवधारणा पर निर्भर नहीं है। अनेक शब्दों का अर्थ उनके 'धात्वार्थ से फलित होता है तो दूसरी ओर अनेक शब्दों को उनके अर्थ समाज या परम्परा या प्रयोग से प्राप्त होते हैं । कुछ शब्द व्युत्पत्तिपरक हैं और कुछ शब्द रूढार्थ । जनों के अनुसार शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण तीन सिद्धान्तों के आधार पर होता है-१. सहज योग्यता (स्वाभाविक शक्ति) २. संकेत ३. समय (परम्परा या प्रयोग)। शब्द में अपने वाच्यार्थ को संकेतित करने की शक्ति है जो अभिसमय अर्थात् परम्परा या प्रयोग से उसे उपलब्ध होती है और जिसके द्वारा वह अपने वाच्यार्थ को संकेतित करता है। शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण (नामकरण)
भाषायी अभिव्यक्ति का माध्यम वाक्य है। वाक्यों की रचना साकांक्ष पदों/शब्दों से होती है। पद/शब्द अक्षरों या वर्गों से निर्मित होते हैं, किन्तु उनके वाच्यार्थ का निर्धारण नामकरण की प्रक्रिया के द्वारा होता है। जैन दार्शनिक न तो मीमांसकों के समान यह मानते हैं कि शब्द का वाच्यार्थ अनादिकाल से पूर्व-निर्धारित है और न नैयायिकों के समान यह मानते हैं कि शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण ईश्वर ने किया है, अपितु वे यह मानते हैं कि शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण अभिसमय या परम्परा से होता है । दूसरे शब्दों में समाज ही शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण करता है। वाच्यार्थ के निर्धारण की इस प्रक्रिया (Method of naming) का उल्लेख हमें जैनागम अनुयोगद्वारसूत्र के नामद्वार से मिलना है। उसमें नामकरण की प्रक्रिया को नामों के दस प्रकार के वर्गीकरणों द्वारा समझाया गया है
एकविधनाम-द्रव्य, गुण और पर्याय युक्त समग्र अस्तित्व या सत्ता 'अभिधेय' या वाच्य है। सभी शब्द मूलतः 'नाम' (Names) हैं अर्थात् किसी के वाचक हैं। समग्र अस्तिस्व को उसके सर्व-सामान्य वाच्यत्व लक्षण के आधार पर 'सत्' नाम से ही अभिहित किया जा सकता है।
द्विविधनाम-अनुयोगद्वार सूत्र में नामों का द्विविध वर्गीकरण तीन आधारों पर किया गया है-(१) वर्गों की संख्या के आधार पर (२) सत्ता के जड या चेतन लक्षण के आधार पर (३) जाति (अविशेष) और व्यक्ति (विशेष) के वाचक होने के आधार पर । वर्णसंख्या के आधार पर
(अ) एक वर्णात्मक (एकाक्षरिक)-जैसे : ही, श्री, घी आदि ।
(ब) अनेक वर्णात्मक (अनेकाक्षरिक)-जैसे : वीणा, लता, माला आदि । चेतना लक्षण के आधार पर
(अ) जीववाचक नाम-जैसे : देवदत्त, यज्ञदत्त, सोमदत्त आदि ।
(ब) अजीववाचक नाम-जैसे : घट, पट, रथ आदि। जातिवाचक अथवा व्यक्तिवाचक होने के आधार पर....... (अ) व्यक्तिवाचक नाम (विशेष वाचक/सविशेषक) जैसे-देवदत्त ।
(ब) जातिवाचक नाम (सामान्य वाचक/अविशेषक) जैसे-मनुष्य । १. स्वाभाविकसामर्थ्यसमयाभ्यामर्थबोधनिबन्धनं शब्द इति ।-प्रमाणनयतत्त्वालोकालछार ४११ । २. अनुयोगद्वारसूत्रम्-नामपद सूत्र १२१-१३७ ।
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