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भाषा और सत्य : ९५ भाषा की कोटि में मानना होगा । उदाहरण के लिए यदि हम कहें कि वाराणसी की जनसंख्या १० लाख है तो हमारा यह कथन न तो असत्य हो कहा जा सकता है और न सत्य हो । सामान्यतया 'लगभग' का प्रयोग करके जो कथन किये जाते हैं वे इस कोटि में आते हैं । इसे हम उत्पत्ति सम्बन्धी
आँकड़ों का आनमानिक प्रस्तुतीकरण कह सकते हैं। इसमें संख्या निश्चित न होकर आनुमानिक होती है।
(२) विगत मिश्रिता-टीकाकारों को दृष्टि में इसका अर्थ मरण सम्बन्धी अनिश्चित संख्या का प्रतिपादन माना गया है जैसे-आज नगर में दसों लोगों की मत्य हो गई अथवा यद्ध में लाखों व्यक्ति मारे गये । विगत मिश्रिता का एक अर्थ भूतकालिक घटनाओं के अनुमानित आँकड़े प्रस्तुत करना भी हो सकता है । पूर्वोक्त उत्पन्न निश्रिता के समान यह भाषा भी न एकान्त रूप से सत्य कही जा सकती है और न असत्य । अतः मिश्र भाषा की कोटि में आती है । टीकाकारों ने इसमें दस आदि निश्चित संख्या का जो उल्लेख किया है वह समुचित नहीं जान पड़ता है। वस्तुतः दोनों प्रकारों में कथंचित् अनिश्चित संख्या का प्रयोग होना चाहिए । जैसे सैकड़ों, हजारों या लाखों ।
(३) उत्पन्न-विगत मिश्रिता-जैसे भारत में हजारों बालक प्रतिदिन जन्म लेते हैं और मरते हैं । यहाँ भी पूर्णतया निश्चित संख्या के अभाव में इसे भी मिश्र भाषा की कोटि में माना गया है।
(४-६) जीव मिश्रिता, अजीव मिश्रिता और जीव-अजीव मिश्रिता-टीकाकारों ने जीवमिश्रिता भाषा का उदाहरण देते हुए कहा है कि अनेक जीवित और अनेक मृत शुक्तिकाओं के समूह को देखकर यह कहना कि यह जीवों का समूह है। जीवित शुक्तिकाओं की अपेक्षा से यह भाषा सत्य है किन्तु मृत शुक्तिकाओं की अपेक्षा से यह असत्य है। अतः इसे मिश्र भाषा कहा गया है। मेरी दृष्टि में इसका एक अन्य अर्थ भी हो सकता है। जीव मिश्रित, अजीव मिश्रित और जीवअजीव मिश्रित-ये तीनों प्रकार की षाएँ वस्तुतः सजोव एवं निर्जीव दोनों प्रकार के लक्षणों से युक्त वस्तु के सन्दर्भ में ऐकान्तिक रूप से जीवित या मृत होने का कथन करना है । उदाहरण के लिए हम शरीर को न जड़ कह सकते हैं न चेतन, अपेक्षाभेद से वह जड़ भी हो सकता है और चेतन भी हो सकता है और उभय भी। उन अपेक्षाओं की अवहेलना करके उसे ऐकान्तिक रूप से जड़, चेतन या उभय कहा जायेगा तो वह मिश्र भाषा का ही उदाहरण होगा, क्योंकि उस भाषा को ऐकान्तिक रूप से सत्य या असत्य नहीं कहा जा सकता है।
(७-८) अनन्त मिश्रित और परिमित मिश्रित-टीकाकारों ने यहाँ अनन्त मिश्रित को व्याख्या अनन्तकायिक वनस्पति के सन्दर्भ को लेकर को है किन्तु मेरी दृष्टि से अनन्त मिश्रित और सीमित मिश्रित का तात्पर्य वनस्पतिकायिक जीवों से न होकर संख्या सम्बन्धी कथनों से ही है। भाषायो प्रयोगों में हम अनेक बार असीम और ससीम का अनिश्चित अर्थ में प्रयोग करते हैं । उदाहरण के लिए हम कहते हैं कि समुद्र की जलराशि अपार (अनन्त) है, उसकी प्रज्ञा का कोई अन्त नहीं आदि । यद्यपि उपयुक्त दोनों कथन में न समुद्र की जलराशि अनन्त है और न प्रज्ञा ही । वस्तुतः वे सीमित हैं किन्तु भाषायी प्रयोग में उन्हें असोम या अनन्त कह दिया जाता है यद्यपि यहाँ वक्ता का प्रयोजन मात्र उसकी विशालता को बताना है। इसी प्रकार कभी-कभी अल्पता को बताने के लिए निषेधात्मक भाषा का प्रयोग कर दिया जाता है। जैसे-आज उसने कुछ नहीं किया । यहाँ कुछ नहीं किया का तात्पर्य पूर्ण निषेधात्मक नहीं है । अतः भाषायी प्रयोगों में ससीम को असीम और
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