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नाकं पुरं सम्प्रवदाम्यहं तत्सुरक्षणा यत्र जना वसन्तः 1 सुरीतिसम्बुद्धिमितास्तु रामा राजा सुनाशीर- पुनीत-धामा ॥२२॥ वह कुण्डनपुर नगर स्वर्ग है, क्योंकि वहां रहने वालों को कोई कष्ट नहीं है । वहां के सभी लोग सुलक्षण देवों के सद्दश हैं। स्त्रियां भी देवियों के समान सुन्दर चेष्टा वाली हैं और राजा तो सुनाशीर पुनीत - धाम है, अर्थात् उत्तम पुरुष होकर सूर्य जैसा पवित्र तेज वाला है, जैसे कि स्वर्ग में इन्द्र होता है ||२२||
अहीन - सन्तान - समर्थितत्वात्पुन्नागकन्याभिरथाञ्चितत्त्वात् । विभात्यनन्तालयसंकुलं यन्निरन्तरं नागकु लैकरम्यम् ॥२३॥
वह कुण्डनपुर नगर निरन्तर नाग (सर्प) देवाताओं के कुलों से अद्वितीय रमणीयता को प्राप्त होकर नागपुरी सा प्रतीत होता है । जैसे नागपुरी अहि अर्थात् सर्पों की सन्तान से समर्थित है, उसी प्रकार यह कुण्डनपुर भी अहीन अर्थात् हीन- कुल से रहित उच्च कुलोत्पन्न सन्तान से संयुक्त है । तथा जैसे नागपुरी पुन्नाग- उत्तम वर्ण वाले नागों की कन्याओं से अञ्चित (संयुक्त) है, उसी प्रकार यह कुण्डनपुर नगर भी उत्तम वंश में उत्पन्न हुई कन्याओं से संयुक्त है । और जैसे नागपुरी अनन्त अर्थात् शेषनाग के आलय (भवन) से युक्त है, उसी प्रकार यह नगर भी अनन्त ( अगणित) उत्तम विशाल आलयों से संकुल है ॥२३॥
समस्ति भोगीन्द्रनिवास एष वप्रच्छलात्तत्परितोऽपि शेषः । समास्थितोऽतो परिखामिषेण निर्भीक एवानु बृहद्विषेण ॥ २४ ॥
यह कुण्डनपुर भोगीन्द्र अर्थात् अति भोग-सम्पन्न जनों के, तथा दूसरे पक्ष में शेषनाग के निवास जैसा शोभित होता है, क्योंकि कोट के छल से चारों ओर स्वयं शेषनाग समुपस्थित हैं, तथा परिखा (खाई) के बहाने कोट के चारों ओर बढ़े हुए जल रूपी शेषनाग के द्वारा छोड़ी गई कांचली ही अवस्थित
॥२४॥
लक्ष्मीं मदीयामनुभावयन्तः जना इहाऽऽगत्य पुनर्वसन्तः । इतीव रोषादुपरुद्ध्य वारि - राशिः स्थितोऽसौ परिखोपचारी ॥२५॥ मेरी लक्ष्मी को लाकर उसे भोगते हुए लोग सर्व ओर से आ-आकर यहां निवास कर रहे हैं, यह देखकर ही मानों रोष से परिखा के बहाने वह समुद्र उस पुर को चारों ओर से घेर कर अवस्थित है ॥२५॥
वणिक्पथः काव्यतुलामपीति श्रीमानसङ्कीर्णपदप्रणीतिः । उपैत्यनेकार्थगुणैः सुरीतिं समादधन्निष्कपटप्रतीतिम् ॥२६॥
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