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कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे । लाखों वर्षों तक जीऊं, या मृत्यु आज ही आ जावे ।। अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आवे | तो भी न्यायमार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पावे ।। ७ ।।
होकर सुख में मग्न न फूलें, पर्वत नदी श्मसान भयानक,
दुःख में कभी न घबरावें । अटवी से नहीं भय खावें || रहे डोल कंप निरंतर यह मन दृढ़तर बन जावे । इष्ट वियोग अनिष्टयोग में, सहनशीलता दिखलावे ॥ ८ ॥
कोई कभी नित्य नये दुष्कृत दुष्कर
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सुखी रहे सब जीव जगत के बैर- पाप अभिमान छोड़ जग, घर-घर चर्चा रहे धर्म की, ज्ञान चरित्र उन्नत कर अपना, मनुज-जन्म फल सब पावें ।। ॥
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न घबरावे ।
मंगल गावे || हो जावें ।
ईति-भीति व्यापे नहीं जग में, वृष्टि समय पर हुआ करे ।
धर्मनिष्ठ होकर राजा भी, रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले, परम अहिंसा धर्म जगत् में, फैले प्रेम परस्पर जग में, अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं, बन कर सब युगवोर हृदय से
मोह दूर पर रहा करे । कोई मुख से कहा करे ॥ देशोन्नति रत रहा करें ।
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वस्तुस्वरूप विचार खुशी से, सब दुःख संकट सहा करें ॥। ११ ॥
न्याय प्रजा का किया करे ।। प्रजा शांति से जिया करे । फैल सर्व हित किया करे ।। १० ।
श्रीमहादेवस्तोत्रम् - १४४
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