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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org असं यागसमवचा का र पाकजरात बा। संयुक्तसमवा लडकि लड॥ कारण कारण समया याच ॥ का राग वाटा का राजा पाकतानलिप्यात्मिक का रामावत चानुवासायागः कम्मे :कार यादामा शषिके । नोपाज रूपी करूपाद्यारे अतः युय समावून मुक्त पशविशिषि के युगमापस सोया गांडीवोपन सायागः सापिका का र अतीयितादावलिंगिक प्रमाणे व्याख्यानमालिशिप रामु व्याताल विष्यतीत्यादिकार्या नावगम्यतन दुख माने माशी व्याख्यातम। शाखा दावाही व्यारव्ययतया प्रतिज्ञातः तसा प्रत्याक्ष नायासे मनावी सहाय गतमनिरुच्यत इष्टप्रायानानीष्टाना विप्राया गास्दा याय।तिनानास्वान यागादयामास्पबाम्रा याता समागमक्तः म्रायासिंह स्वाला विजा डूबना दाम्रायत्रामा एमितिविनादिकार्यतया विज्ञाता लगवानीश्वरखायनाचा म्राय स्पसियामा एयइतिराः दाममा ६ः पूर्वद्यादीनी साधर्म्य विधम् परिज्ञाना हिरापात्मज्ञाला इत्यादिना वा कान्यच्चा पोसाकमा विज्ञानाव्याप्तिनिः खेयसाधिगमः ॥ जगात स्पानंद करेविद्या सर्वयां मादेव ही आनंदयनिसा वादाद्यादितीबा नःःमः ह P. प्रतौ चन्द्रानन्दविरचितवृत्तिसहितस्य वैशेषिकसूत्रस्य समाप्तिः । Plate VI
SR No.002759
Book TitleVaisheshika Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size19 MB
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