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________________ प्रभुवीर पट्टावली (२) • स्थानकवासी साधु श्री मणिलालजी द्वारा संकलित "प्रभुवोर पट्टावली" के पृ० १५७ में ३३ पट्टधरों के उपरान्त आगे के पट्टधरों के नाम निम्न प्रकार से दिये हैं - ३४ वर्धनाचार्य ३५ भूराचार्य ३६ सूदनाचार्य ३७ सुहस्ती ३८ वर्धनाचार्य ३६ सुबुद्धि ४० शिवदत्ताचार्य ४१ वरदत्ताचार्य ४२ जयदत्ताचार्य ४३ जयदेवाचार्य ४४ जयघोषाचार्य Jain Education International ४५ वीरचक्रधर ४६ स्वातिसेनाचार्य ४७ श्री वन्ताचार्य ४४ सुमतिप्राचार्य ( लौंकाशाह के गुरु ) अब हम पंजाब की पट्टावली और श्री मणिलालजी की पट्टावली के नाम तुलनात्मक दृष्टि से देखते हैं तो वे एक दूसरे से मिलते नहीं हैं, इसका कारण यही है कि ये दोनों पट्टावलियां कल्पित है और इसी कारण से पंजाबी स्थानकवासियों की पट्टावली के अनुसार लोकाशाह के गुरु ज्ञानजी यति का पट्ट नं० ० ६० वां दिया है, तब श्री मणिलालजी ने ज्ञानजी यति के स्थान पर "सुमति" आचार्य नाम लिखा है मोर उनको ४८ वां पट्टधर लिखा है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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