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________________ ४२ पट्टावली-पराग लोकाशाह, लौकागच्छ मौर स्थानकवासी सम्प्रदाय के सम्बन्ध में अनेक व्यक्तियों ने लिखा है। वाडीलाल मोतीलाल शाह ने अपनी "ऐतिहासिक नोंघ" में, संत बालजी ने "धर्मप्रारण लौकाशाह" में, श्री मरिणलालजी ने "प्रभुवीर पट्टावली" में मोर अन्यान्य लेखकों ने इस विषय के लेखों में जो कुछ लिखा है, वह एक दूसरे से मेल नहीं खाता, इसका कारण यही है कि सभी लेखकों ने अपनी बुद्धि के अनुसार कल्पनामों द्वारा कल्पित बातों से अपने लेखों को विभूषित किया है। इन सब में शाह वाडीलाल मोतीलाल सब के अग्रगामी हैं। इनकी प्रसत्य कल्पनाएं सब से बढ़ी-चढ़ी हैं, इस विषय का एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा । लौकागच्छ के प्राचार्य श्री मेघजी ऋषि अपने २५ साधुनों के साथ लौकामत को छोड़ कर तपागच्छ के प्राचार्य श्री विजयहोरसूरिजी के शिष्य बने थे। इस घटना को बढ़ा-चढ़ा कर शाह वाडीलाल लौकागच्छ के ५०० साधु तपागच्छ में जाने की बात कहते हैं। अतिशयोक्ति की भी कोई हद होती है, परन्तु शाह ने इस बात का कोई ख्याल नहीं किया। इसी प्रकार शाह वाडीलाल ने अपनी पुस्तक "ऐतिहासिक नोंध" में अहमदाबाद में मूर्तिपूजक मौर स्थानकवासी साधुनों के बीच शास्त्रार्थ का जजमेन्ट लिख कर अपनी असत्यप्रियता का परिचय दिया है, शाह लिखते हैं - "माखिर सं. १८७८ में दोनों ओर का मुकद्दमा कोर्ट में पहुंचा। सरकार ने दोनों में कौन सच्चा कोन झूठा ? इसका इन्साफ करने के लिए दोनों ओर के साधुमों को बुलाया । "स्था० की ओर से पूज्य रूपचन्दजी के शिष्य जेठमलजी आदि २८ साधु उस सभा में रहने को चुने गये" और सामने वाले पक्ष की भोर से “वीरविजय प्रादि मुनि और शास्त्री हाजिर हुए।" मुझे जो यादी मिली है, उससे मालूम होता है कि मूर्तिपूजकों का पराजय हुमा भौर मूर्तिविरोधियों का जय हुमा।" शास्त्रार्थ से वाकिफ होने के लिए जेठमलजीकृत “समकितसार" पढ़ना चाहिए xxx १८७८ के पोष सुदि १३ के दिन मुकद्दमा का जजमेन्ट (फैसला) मिला।" ऐ• नों० पृ० १२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002753
Book TitleLaunkagacchha aur Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijayji
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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