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पट्टावली-पराग
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तथा सम्प्रदाय की मान्यता का निर्देश करके इस विषय को बढ़ाना तो बेकार ही होगा।
लौका के जन्म-स्थान और जाति के सम्बन्ध में तो इतना प्रज्ञान खाया हुआ है कि उसका किसी प्रकार से निर्णय नहीं हो सकता। कोई इनको दशा-श्रीमाली और लोम्बड़ी में जन्मा हुमा मानते हैं, कोई इनको प्रोसवाल जातीय मरहटवाड़ा का जन्मा हुआ मानते हैं, कोई इनको दशा-पोरवाल जाति में पाटन में जन्मा हुमा मानते हैं। कोई इनको नागनेरा नदी-तट के गांव में जन्म लेने वाला मानते हैं, कोई इनको जालोर मारवाड़ समीपवर्ती पोषालिया निवासी मानते हैं, कोई इनका जन्म-स्थान जालोर को मानते हैं, तब स्वामी जेठमलजी, श्री अमोलक ऋषिजी, श्री सन्तबालजी और शा० वाड़ीलाल मोतीलाल लोकाशाह को अहमदाबाद निवासी मानते हैं।
पूर्वोक्त लोकाशाह के संक्षिप्त निरूपण से इतना तो निश्चित हो जाता है कि लोकाशाह १५वीं शताब्दी के अन्तिम चरण से १६वीं शती के द्वितीय चरण तक जीवित रहने वाले एक गृहस्थ व्यक्ति थे। लौका ने मूर्तिपूजा के अतितिक्त अनेक बातों को अशास्त्रीय कहकर खण्डन किया था, परन्तु उनके अनुयायी ऋषियों ने एक मूर्तिपूजा के अतिरिक्त शेष सभी लौका द्वारा निषिद्ध बातों को मान्य कर लिया था और कालान्तर में लौकागच्छ के अनुयायी यतियों मोर गृहस्थों ने मूर्तिपूजा का विरोध करना भी छोड़ दिया था। आज तक कई स्थानों में लुकागच्छ के यति विद्यमान हैं जो मूर्तियों के दर्शन करते हैं और उनकी प्रतिष्ठा भी करवाते हैं और लौकापच्छ का अनुयायी गृहस्ववर्य जिन-मूर्तियों को पूजा भी करता है ।
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