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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना यह बात इस गणना में शंका उत्पन्न करनेवाली है । संभव है, उक्त दंतकथाओं को सत्य मानकर ही आचार्य हेमचंद्रजी ने परिशिष्ट पर्व में विचारपूर्वक ही निर्वाण के १५५ वें वर्ष में चंद्रगुप्त का राजा होना लिखा होगा ४९ । परंतु, जहाँ तक मैंने देखा है, भद्रबाहु - चंद्रगुप्तवाली उक्त कथाओं के लिये प्राचीन जैनसाहित्य में कोई स्थान नहीं है । प्रथम कथानिर्माण का कोई भी कारण हो तो यही हो सकता है कि भद्रबाहु और चंद्रगुप्त- इन दोनों के समय में भिन्न भिन्न दुर्भिक्ष पड़े थे, जिनको पिछले लेखकों ने एक मान लिया । इसके परिणाम स्वरूप भद्रबाहु और चंद्रगुप्त के समसामयिक होने की किंवदंतियाँ प्रचलित हो चलीं । आवश्यक चूर्णि, तित्थोगाली पइन्नय प्रमुख प्राचीन जैन ग्रंथों से प्रमाणित होता है कि भद्रबाहु के समय में जब दुर्भिक्ष पड़ा और उसके अंत में पाटलिपुत्र नगर में श्रमण संघ ने एकत्र हो ग्यारह अंगों की व्यवस्था की तथा बारहवाँ अंग पढ़ने के लिये स्थूलभद्र प्रमुख साधुओं को भद्रबाहु के समीप भेजा तब तक पाटलिपुत्र में नंद का ही राज्य था । चंद्रगुप्त का इस घटना के साथ कहीं भी नामोल्लेख तक नहीं है । ६९ हाँ, निशीथचूर्णि आदि ग्रंथों में चंद्रगुप्त के समय में दुष्काल पड़ने का उल्लेख अवश्य मिलता है, पर इससे यह कैसे मान लिया जाय कि भद्रबाहु के समय का और यह दुर्भिक्ष एक ही था ? भद्रबाहु से स्वप्नों का फल पूछनेवाली कथा का भी किसी प्राचीन जैन ग्रंथ में उल्लेख नहीं है । षोडशस्वप्नाधिकार, भद्रबाहु - चरित और इसी ४९. “ एवं च श्रीमहावीर - मुक्तेर्वर्षशते गते । पंचपंचाशदधिके, चंद्रगुप्तोऽभवन्नृपः ॥३३९॥" Jain Education International - हेमचंद्रसूरि कृत, परिशिष्ट पर्व सर्ग ८ पृ० ८२ । ५०. यद्यपि संघ एकत्र होने के संबंध में नंदराज्य का स्पष्टोल्लेख नहीं है, पर अनुवृत्ति से अधिकार नंद का ही चल रहा है, चंद्रगुप्त का प्रसंग उसके बहुत पीछे आता है, इससे सिद्ध है कि पाटलिपुत्र में जब जैन संघ की पहली सभा हुई उस समय वहाँ नंद का ही राज्य था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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