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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना ६३ अर्थात् 'श्रीमहावीर के निर्वाण के बाद सुधर्मा २०, जंबू ४४, प्रभव ११, शय्यंभव २३, यशोभद्र ५०, संभूतिविजय ८, भद्रबाहु १४ और स्थूलभद्र, ४५ वर्ष तक क्रमशः युगप्रधान पद पर रहे, यहाँ तक वीर निर्वाण को २१५ वर्ष हुए४५ ।' ४५. निर्वाण से २१५ वर्ष के अंत में स्थूलभद्र का युगप्रधानत्व पर्याय काल पूरा होता है और इसी समय में पट्टावलिकार उनका स्वर्गवास भी बताते हैं, परंतु मेरी समझ में युगप्रधानत्व की समाप्ति के साथ ही उनके आयुष्य की समाप्ति मान लेना ठीक नहीं है । जहाँ तक मैं समझता हूँ, आर्य स्थूलभद्र ने निर्वाण संवत् २१५ में ८९ वर्ष की वृद्धावस्था में युगप्रधानत्व पद अपने मुख्य शिष्य आर्य महागिरि को सुपुर्द कर दिया होगा और इसके बाद १० वर्ष तक जीकर २२५ में ९९ वर्ष की अवस्था में वे स्वर्गवासी हुए होंगे । मेरे इस अनुमान के कारण निम्नलिखित हैं (१) यदि २१५ वर्ष में स्थूलभद्र का स्वर्गवास माना जायगा तो उनकी दीक्षा १४६ में माननी पड़ेगी, क्योंकि उन्होंने ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली थी और ९९ वर्ष तक वे जीए थे । इस प्रकार यदि १४६ में स्थूलभद्र दीक्षित हो गए होते तो करीब १० वर्ष तक ये संभूतविजय के पास अध्ययन कर सकते थे, परंतु पठन पाठन के संबंध में सर्वत्र भद्रबाहु-स्थूलभद्र का ही गुरु-शिष्यभाव देखा जाता है । इससे मालूम होता है कि स्थूलभद्र की दीक्षा के बाद आर्य संभूतविजय अधिक समय नहीं जीए होंगे । १५६ वें वर्ष के अंत में आर्य संभूतविजयजी का स्वर्गवास हुआ था, और संभवत: इसी वर्ष में स्थूलभद्र की दीक्षा भी हुई होगी । (२) आर्य सुहस्ती स्थूलभद्र के हस्त-दीक्षित शिष्य थे । उन्होंने ३० वर्ष की उमर में स्थूलभद्र के पास दीक्षा ली थी और १०० वर्ष की अवस्था में निर्वाण से २९१ वें वर्ष के अंत में उनका स्वर्ग-वास हुआ था । इससे यह सिद्ध होता है कि आर्य सुहस्ती की दीक्षा निर्वाण से २२१ वें वर्ष में हुई । सोचने की बात यह है कि यदि २१५ में ही स्थूलभद्र स्वर्गवासी हो गए होते तो २२१ में उनके पास आर्य्य सुहस्ती की दीक्षा कैसे हो सकती थी ? इससे मानना होगा कि स्थूलभद्र का स्वर्गवास २१५ में नहीं पर २२१ के बाद हुआ था । स्थूलभद्र ने आर्य सुहस्ती को जुदा गण दिया था, ऐसा निशीथ चूर्णि आदि में लेख है । इससे ज्ञात होता है कि स्थूलभद्र के स्वर्गवास के समय में सुहस्ती का कम से कम ४-५ वर्ष का तो दीक्षा पर्याय होगा ही, अन्यथा स्थूलभद्र उनको पृथक् गण प्रदान नहीं करते, इन सब बातों के पर्यालोचन से यही सिद्ध होता है कि स्थूलभद्र का २१५ में नहीं पर २२५ में स्वर्गवास हुआ था । ___ इसी प्रकार आर्य महागिरि का युगप्रधानत्व-काल निर्वाण संवत् २४५ में पूरा होता है और कतिपय पट्टावली-लेखकों ने इसी अर्से में आर्य महागिरिजी का स्वर्ग-वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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