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________________ ६० वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना (२) राजपूताना म्यूजिअम ( अजमेर) में रखे हुए नगरी (मध्यमिका, उदयपुर राज्य में) के शिलालेख में " कृतेषु चतुर्षु वर्षशतेष्वेकाशीत्युत्तरेष्वस्यां मालवपूर्वायां [ ४००] ८०१ कार्तिकशुक्ल पंचम्याम् ।" (३) मंदसौर से मिले हुए कुमारगुप्त ( प्रथम ) ) के समय के शिलालेख में"मालवानां गणस्थित्या याते शतचतुष्टये । त्रिनवत्यधिकेब्दानाम्रि (मृ) तौ सेव्यघनस्त (स्व) ने || सहस्यमासशुक्लस्य प्रशस्तेह्नि त्रयोदशे ॥" (४) मंदसौर से मिले हुए यशोधर्मन् (विष्णुवर्द्धन) के समय के शिलालेख में "पंचसु शतेषु शरदां यातेष्वेकान्नवतिसहितेषु मालवगणस्थितिवशात्कालज्ञानाय लिखितेषु ॥" (५) कोटा के पास कणस्वा के शिवमंदिर में लगे हुए शिलालेख में "संवत्सरशतैर्यातैः सपञ्चनवत्यर्गलैः [1] सप्तभिर्मालवेशानां । - भारतीय प्रा० लिपिमाला १६६ | (६) " कृतेषु चतुर्षु वर्षशतेष्वष्टाविंशेषु ४० २०८ फाल्गुण (न) बहुलस्या पञ्चदश्यामेतस्यां पूर्वायां ।” (७) "यातेषु चतुर्षु क्रि (कृ) तेषु शतेषु सौस्ये (म्यै) ष्वा (ष्टा) शीतसोत्तरपदेष्विह वत्स [रेषु ] शुक्ले त्रयोदशदिने भुवि कार्तिकस्य मासस्य सर्वजनचित्तसुखावहस्य |" Jain Education International - फ्ली, गु० इं, पृ० ७४ । इन उल्लेखों में कहीं भी विक्रम के नाम का निर्देश नहीं है। धौलपुर से मिले हुए चाहमान (चौहान) चंड महासेन के विक्रम संवत् ८६८ ( ई० स० ८४१ ) के शिलालेख में पहले पहल इस संवत् के साथ विक्रम का नाम जुड़ा हुआ मिलता है । वह लेख - खंड इस प्रकार है - फ्ली, गु० इं, पृ० २५३ "वसु नव [अ] ष्टौ वर्षागतस्य कालस्य विक्रमाख्यस्य । वैशाखस्य सिताया (यां) रविवारयुतद्वितीयायाम् ॥" -भारतीय प्राचीन लिपिमाला । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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