SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना पुष्यमित्र की इस धर्मांधता के कारण कलिंग के सम्राट् खारवेल को दो बार मगध पर चढ़ाई करनी पड़ी थी । पहली चढ़ाई उसने मथुरा से लौटकर की । पुष्यमित्र को योग्य शिक्षा देकर वह लौट गया, ३२ पर पुष्यमित्र अपनी धर्मांधता से बाज नहीं आया । चार वर्ष के बाद उसने दुबारा पाटलिपुत्र अर्थात् - मुडिवत नाम के शुभध्यानी आचार्य थे । उनके ध्यान का पुष्यमित्र ने भंग किया । यदि यह 'मुड्डिवत' आचार्य ही तित्थोगालीवाले 'पाडिवत' आचार्य हों और 'पुष्यमित्र' को पाटलिपुत्र का राजा मान लिया जाय तो हमारी पूर्वोक्त मान्यता आगम प्रमाण से भी सिद्ध हो सकती है । तित्थोगाली आदि ग्रंथों में 'पाडिवय' आचार्य को कल्की का समकालीन लिखा है, तब महानिशीथ में 'श्रीप्रभ' अनगार को कल्की के समय का प्रमुख स्थविर बताया है । इससे या तो व्यवहार चूर्णिवाला 'मुड्डिवत' 'पाडिवत' का अशुद्ध रूप है, अथवा 'पाडिवत' 'मुड्डिवत' का अशुद्ध रूप । अथवा 'श्रीप्रभ' 'मुड्डिवत' और 'पाडिवत' ये तीनों ही भिन्न भिन्न स्थविर होंगे जिनको कि कल्की- पुष्यमित्र ने सताया होगा । खारवेल ने मगध पर की पहली चढ़ाई अपने राज्य के ८ वें वर्ष में की थी और दूसरी १२ वें वर्ष में । खारवेल अपने राज्य का १३ वर्ष का वृत्तांत लिखाकर लेख को समाप्त करता है और अंत में समय का निर्देश करता हुआ कहता है 'मौर्य काल के १६४ वर्ष व्यतीत हो चुकने पर सब कार्य लिपिबद्ध किए ।' (मुरियकाले वोच्छिन्ने च चोयठि अगसतकंतरिये उपादयति 1 ) मेरे मत से मौर्य राजत्वकाल १६० वर्ष का था और मौर्यकाल के अनंतर ही पुष्यमित्र मगध का राजा हुआ था । इस हिसाब से खारवेल के राज्याभिषेक का बारहवाँ वर्ष पुष्यमित्र के चौथे वर्ष में आयगा और खारवेल का ८ वाँ वर्ष मौर्यकाल के १६०वें अथवा पुष्यमित्र के १ ले वर्ष में निकलेगा । मौर्य संवत् का १६० वाँ और १६५ वाँ वर्ष वीर निर्वाण का ३७० वाँ और ३७५ वाँ वर्ष था जो ई० स० पूर्व १५८ वें और १५३ वें वर्ष में पड़ता था । इससे साबित हुआ कि ई० स० पूर्व १५८ वें वर्ष में मौर्य राज्य का अंत करके पुष्यमित्र - कल्की- म -मगध की राज्यगद्दी पर बैठा और उसी वर्ष तथा उसके चौथे वर्ष में उसने उपद्रव मचाया जिसको मिटाने के लिये दो वार कलिंग महाराज खारवेल मगध पर चढ़ गया था । ३२. मगध की इस पहली चढ़ाई के विषय में खारवेल के हाथीगुंफावाले लेख में इस प्रकार उल्लेख है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy