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श्रमणों पर भी अत्याचार करेगा । उस समय कल्पव्यवहारधारी तपस्वी युगप्रधान आचार्य पाडिवत तथा दूसरे साधु दुःख की निवृत्ति के लिये छट्ठ अट्ठम का तप करेंगे । तब कुछ समय के बाद नगरदेवता कल्की से कहेगा- 'अये निर्दयी ! तू श्रमण संघ को तकलीफ देकर क्यों जल्दी मरने की तैयारी कर रहा है ? जरा सबूर कर, तेरे पापों का घड़ा भर गया है ।' नगरदेवता की इस धमकी की कुछ भी परवाह न करता हुआ वह साधुओं से भिक्षा का षष्ठांश वसूल करने के लिये उन्हें बाड़े में कैद करेगा। साधुगण सहायतार्थ इंद्र का ध्यान करेंगे तब अंबा और यक्ष कल्की को चेताएँगे, पर वह किसी की नहीं सुनेगा । आखिर में संघ के कायोत्सर्ग ध्यान के प्रभाव से इंद्रका आसन कँपेगा और वह ज्ञान से संघ का उपसर्ग देखकर जल्दी वहाँ आएगा । धर्म की बुद्धिवाला और अधर्म का विरोधी वह दक्षिण लोकपति (इंद्र ) ) जिन-प्रवचन के विरोधी कल्की का तत्काल नाश करेगा ।
उग्रकर्मा कल्की उग्र नीति से राज करके ८६ वर्ष की उमर में निर्वाण से २००० वर्ष बीतने पर इंद्र के हाथ से मृत्यु पाएगा । तब इंद्र कल्की के पुत्र दत्त को हित शिक्षा दे श्रमण संघ की पूजा करके अपने स्थान पर चला जायगा ।
(८) दीपालिका कल्प में जिनसुंदर सूरि लिखते हैं
'निर्वाण से २००० वर्ष पूरे होंगे तब भाद्रपद शुदि ८ के दिन इंद्र के चपेटयप्रहार से ८६ वर्ष की उमर में मरकर कल्की नरक में जायगा ।'
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
(९) 'महानिशीथ' सूत्र के ५ वें अध्ययन में कल्की के संबंध में गौतम स्वामी का प्रश्नोत्तर है, जिसका सार इस प्रकार है
गौतम - 'भगवान् ! श्रीप्रभ नामक अनगार किस समय होगा ?'
महावीर - 'हे गौतम ! जिस वक्त निकृष्ट लक्षणवाला, अद्रष्टव्य, रौद्र, उग्र और क्रोधी प्रकृतिवाला, उग्र दंड देनेवाला, मर्यादा और दयाहीन, अति क्रूर और पापबुद्धिवाला, अनार्य, मिथ्यादृष्टि ऐसा कल्की नाम का राजा होगा, जो पापी श्री श्रमणसंघ की भिक्षा के निमित्त कदर्थना करेगा, और उस वक्त जो शीलसमृद्ध और सत्ववंत, तपस्वी साधु होंगे उनकी ऐरावतगामी वज्रपाणि इंद्र आकर सहायता करेगा । उस समय श्रीप्रभ नामक अनगार होगा ।'
जिनका सारांश ऊपर दिया गया है, वे तित्थोगाली आदि ग्रंथों के मूलपाठ क्रमशः नीचे दिए जाते हैं । पाठक महोदय देखेंगे कि कल्की के संबंध में जैन ग्रंथकारों की मान्यता
क्या है
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