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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
नंदकालीन कीमती जैन स्तूपों और बौद्धों के संघारामों (विहारों) का नाश कर हजारों बौद्ध भिक्षुओं और जैन निग्रंथों के वेष इसने जबरदस्ती उतरवा लिए२१ ।
३१. महायानिक बौद्धों के 'दिव्यावदान' ग्रंथ के २९ वें अवदान में लिखा है कि पुष्यधर्मा के पुत्र पुष्यमित्र ने अपने मंत्रियों से पूछा-ऐसा कौन उपाय है जिससे हमारा नाम हो ? मंत्रियों ने कहा - महाराज ! आपके वंश में राजा अशोक हुआ जिसने ८४००० धर्मराजिका स्थापित करके अपनी कीर्ति अचल की जो जहाँ तक भगवान् (बुद्ध) का शासन रहेगा वहाँ तक रहेगी । आप भी ऐसा कीजिए ताकि आपका नाम अमर हो जाय। पुष्यमित्र ने कहा-राजा अशोक तो बड़ा था । हमारे लिये कोई दूसरा उपाय है ? यह सुनकर उसके एक अश्रद्धावान् ब्राह्मण ने कहा-देव ! दो कारणों से नाम अमर होगा x xx राजा पुष्यमित्र चतुरंग सेना को सज्जित करके भगवच्छासन का नाश करने की बुद्धि से कुर्कटाराम की ओर गया, पर द्वार पर जाते ही घोर सिंहनाद हुआ जिससे भयभीत होकर राजा वापिस पाटलिपुत्र को चला आया । दूसरी और तीसरी बार भी यही बात हुई । आखिर में राजा ने भिक्षु और संघ को अपने निकट बुलाकर कहा-मैं बुद्धशासन का नाश करूँगा । तुम क्या चाहते हो, स्तूप या संघाराम ? भिक्षुओं ने (स्तूपों को ?) ग्रहण किया । पुष्यमित्र संघाराम और भिक्षुओं का नाश करता हुआ शाकल तक पहुँच गया । उसने यह घोषणा कर दी कि जो मुझे श्रमण (साधु) का मस्तक देगा उसको मैं सोने की सौ मुहर दूँगा । xxx बड़ी संख्या में शिर देना आरंभ किया सुनकर वह अर्हत् (अर्हत् प्रतिमा ?) का घात करने लगा, पर वहाँ उसका कोई प्रयत्न सफल नहीं हुआ । सब प्रयत्न छोड़कर वह कोष्टक में गया । उस समय दंष्ट्राविनाशी यक्ष सोचता है कि यह भगवच्छासन का नाश हो रहा है, पर मैंने यह शिक्षा ग्रहण की हुई है कि 'मैं किसी का अप्रिय नहीं करूँगा' । उस पक्ष की पुत्री की कृमीसेन यक्ष याचना करता था पर उसे पापकर्मी समझकर वह अपनी पुत्री को नहीं देता था, पर उस समय उसने भगवच्छासन की रक्षा के निमित्त अपनी पुत्री कृमीसेन को दे दी।
पुष्यमित्र को एक बड़े यक्ष की मदद थी, जिससे वह किसी से मारा नहीं जाता था।
दंष्ट्राविनाशी यक्ष पुष्यमित्र संबंधी यक्ष को लेकर पहाड़ों में फिरने को चला गया । उधर कृमीसेन यक्ष ने एक बड़ा पहाड़ लाकर सेना सहित पुष्यमित्र को रोक लिया।
उस (पुष्यमित्र) का 'मुनिहत' ऐसा नाम स्थापित किया । जब पुष्यमित्र मारा गया तब मौर्यवंश का अंत हुआ ।
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