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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना मगध के राज्य पर नंद का राज्याभिषेक हुआ और नव पीढ़ी तक नंद के वंशजों ने १५० वर्ष पर्यंत मगध का साम्राज्य भोगा । जैनों ने इस दीर्घ काल को अपनी गणना - शृंखला का दूसरा आँकड़ा बना लिया । 30 वीर निर्वाण को २१० वर्ष पूरे हुए थे कि नंदों का राजसिंहासन डोला, चाणक्य ब्राह्मण ने अंतिम नंद को पदच्युत करके चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का महाराजा बना लिया । ३३ मगध और आसपास के प्रदेशों में विचरते हुए जैनाचार्य इस मौर्य साम्राज्य काल को स्मरण में रखते गए और मौर्य काल के १६० वर्षों से अपनी गणना - शृंखला का तीसरा आँकड़ा पूरा कर वीर निर्वाण से ३७० वर्ष तक आ पहुँचे । अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ को मारकर उसके सेनानी पुष्यमित्र ने मगध की राज्य- धुरा अपने कंधे पर ले ली । पुष्यमित्र केवल वैदिक धर्मानुयायी ही नहीं, अपने इष्ट धर्म की वृद्धि के लिये अन्यधर्म - नाशक धर्मांध राजा था । नंद और मौर्य वंश्य राजाओं की तरह अपने मान्य धर्म के पोषण के साथ साथ अन्य धर्मों का उचित सत्कार करने की जगह उनका विनाश करना ही उसने ठीक समझा । अशोक और संप्रति सरीखे धार्मिक मौर्य राजाओं की छत्रछाया में फूले फले बौद्ध और जैन धर्मारामों के लिये पुष्यमित्र प्रचंड दावानल रूप साबित हुआ । ३०. युगप्रधानस्तोत्रयंत्र के पत्र में एक गाथा लिखी हुई मिलती है जिसका भाव यह है कि 'महावीर निर्वाण की रात में अवंति में पालक राजा होगा, जो अपुत्र उदायी का मरण होने पर पाटलिपुत्र का स्वामी होगा ।' मूल गाथा यह है " मह, निव्वाणनिसाए, गोयम पालयनिवो अवंतीए । होहीइ पाडलीअ पहू, सो असुयउदाय (इ) निव मरणे ॥१॥" Jain Education International इसके आगे "पालगरणो सट्ठी" इत्यादि प्रसिद्ध गाथाएँ दी हैं । पर हम इस गाथा के उत्तरार्ध के उल्लेख पर विश्वास नहीं कर सकते कि उदायी की मृत्यु के बाद पालक पाटलिपुत्र का राजा हुआ हो, क्योंकि अन्य सब जैन उल्लेख नंद को ही उदायी का उत्तराधिकारी बताते हैं । वीर- ३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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