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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
के, ६० बलमित्र-भानुमित्र के, ४० नभःसेन के और १०० वर्ष गर्दभिल्लों के बीतने पर शक राजा का शासन हुआ ।
___अर्हन् महावीर को निर्वाण हुए ६०५ वर्ष और ५ मास बीतने पर शक राजा उत्पन्न हुआ८ ।
कोई कोई विद्वान् इस राजत्व कालगणना के यथार्थ होने में यह कहकर संदेह करते हैं कि यह किसी एक ही स्थान के राजाओं की वंशावली नहीं है, किंतु अनेक स्थानों के अनेक राजाओं के राजत्वकाल का संमिश्रण है।
२८. हमारे पास एक पुस्तक है, जिसे दुःषमगंडिका और युगप्रधान गंडिका का 'सार' कह सकते हैं इसके प्रथम पत्र के दूसरे पृष्ठ में जैन काल गणना-संबंधी वे गाथाएँ हैं जिनकी आचार्य मेरुतुंग ने 'विचारश्रेणि' नामक टीका लिखी है। उसमें पालक का राज्य २० वर्ष का लिखा है और नंदों का १५८ वर्ष का, मौर्यों का १०८, पुष्यमित्रों का ३०, बलमित्रभानुमित्र का ६०, दधिवाहन का ४०, गर्दभिल्लों का ४४, शकों का ५०, . विक्रम का ९७ वर्षों का और ३८ वर्ष शून्य वंश का राज्यकाल बताकर ६०५ में शक संवत्सर का प्रारंभ बताया है । पाठकों के अवलोकनार्थ हम उन मूल पंक्तियों को नीचे उद्धृत करते हैं
"श्रीवीरनिर्वाणात् विशालायां पालकराज्य' २० वर्षाणि । एतेन सहितं सर्वनंदराज्यं' १७८ । १०८ वर्षाणि मौर्यराज्यं, वर्ष ३० पुष्यमित्राणां, बलमित्र-भानुमित्रराज्यं ६० वर्षाणि। दधिवाहनराज्यं ४० । तदा ४१६ । तदा च देवपत्तने चंद्रप्रभजिनभुवनं भविष्यति । अथ गर्दभिल्लराज्यं वर्ष ४४, तदनु वर्ष पं० ५० शकवंशा राजानो जीवदयारता जिनभक्ताश्च भविष्यति । श्री वीरात् । पृ० ४७० ।
कालंतरेण केणवि, उप्पाडित्ता सगाण तं वंसं । होही मालवराया नामेणं विक्कमाइच्चो ॥१॥ तो सत्त नवइ वासा ९७ पालेही विक्कमो रज्जं (?) । अरिणत्तणेण सो विहु, विहए संवच्छरं निययं ॥२॥ संवच्छरं तु लत्तं (?) तंमि सययंमि गणनाह ॥
श्री वीरनिर्वाणात् ५५० विक्रमवंशस्तदनु वर्ष ३८ शून्यो वंशः । श्री वीरात् ६०५ शक संवत्सरः ॥"
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