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________________ १७८ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना हम थेरावली के ही शब्दों में नीचे उद्धृत करते हैं "अब आर्य स्कंदिलाचार्य का वृत्तांत इस प्रकार है-उत्तर मथुरा में मेघरथ१ नामक उत्कृष्ट श्रमणोपासक और जिनाज्ञाप्रतिपालक ब्राह्मण था, उसकी रूपसेना नाम की शीलवती स्त्री थी और सोमरथ नामक पुत्र था। एक बार ब्रह्मद्वीपिका शाखा के आचार्य सिंह स्थविर विहार-क्रम से मथुरा में पधारे और उनके उपदेश से वैराग्य पाकर ब्राह्मण सोमरथ ने उनके पास दीक्षा ली । उस अवसर में आधे भारतवर्ष में बारह वर्ष का भयंकर दुष्काल पड़ा जिसके प्रभाव से भिक्षा न मिलने के कारण कितने ही जैन निग्रंथ वैभार पर्वत तथा कुमारगिरि आदि तीर्थों में अनशन करके स्वर्गवासी हो गए। उस समय जिनशासन के आधारभूत पूर्व संगृहीत ग्यारह अंग नष्टप्राय हो गए। पीछे से दुष्काल का अंत होने पर विक्रम संवत् १५३ में स्थविर आर्य स्कंदिल ने मथुरा में जैन निग्रंथों की सभा एकत्र की। सभा में स्थविरकल्पी मधुमित्राचार्य तथा आर्य गंधहस्ती प्रभृति १२५ निग्रंथ एकत्र हुए । उस समय उन निग्रंथों के अवशेष मुख-पाठों (कंठस्थ पाठों) को मिलाकर आचार्य गंधहस्ती आदि स्थविरों की सम्मतिपूर्वक आर्य स्कंदिलजी ने ग्यारह अंगों की संकलना की और स्थविरप्रवर स्कंदिल की प्रेरणा से आचार्य गंधहस्ती ने भद्रबाहु नियुक्ति के अनुसार उन ग्यारह अंगों पर विवरणों की रचना की । तब से सर्व सूत्र भारतवर्ष में माथुरी वाचना के नाम से प्रसिद्ध हुए । मथुरा-निवासी ओशवालवंश-शिरोमणि श्रावक पोलाक ने गंधहस्ती विवरण सहित उन सर्व सूत्रों को ताड़पत्र आदि में लिखवाकर पठन-पाठन के लिये निग्रंथों को अर्पण किया । इस प्रकार जैनशासन की उन्नति करके स्थविर आर्य स्कंदिल विक्रम संवत् २०२ में मथुरा में ही अनशन करके स्वर्गवासी हुए ।" आर्य स्कंदिल के वृत्तांत के साथ ही इस थेरावली की समाप्ति होती २१. प्राचीन जैन ग्रंथकार आजकल की 'मथुरा' को उत्तर मथुरा कहते थे और दक्षिण देश की आधुनिक 'मदुरा' को दक्षिण मथुरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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