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________________ १६६ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना कुमारपर्वत पर श्रेणिक राजा के बनवाए हुए ऋषभदेव प्रासाद का नाश कर वह उसमें से ऋषभदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा को उठाकर पाटलिपुत्र में ले गया । महावीर-निर्वाण से १५४ वर्ष बीतने के बाद . चाणक्य से प्रेरित मौर्यपुत्र चंद्रगुप्त नवें नंद राजा को पाटलिपुत्र से निकालकर मगध का राजा हुआ । चंद्रगुप्त पहले जैन श्रमणों का द्वेषी बौद्ध धर्मी था पर पीछे से चाणक्य के समझाने पर वह जैन धर्म का दृढ़ श्रद्धावान् श्रावक हो गया था। अति पराक्रमी चंद्रगुप्त ने सिलीक्स नामक यवन राजा के साथ मित्रता करके अपने राज्य का विस्तार किया और अपने राज्य में मौर्य संवत्सर स्थापित किया । भगवान् महावीर से १८४ वर्ष व्यतीत होने पर चंद्रगुप्त का स्वर्गवास हुआ और उसका पुत्र बिंदुसार पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा। बिंदुसार भी जैनधर्म का आराधक परम श्रावक था । उसने २५ वर्ष तक राज्य किया और वीर निर्वाण से २०९ वर्ष के बाद वह धर्मी राजा स्वर्गवासी हुआ । निर्वाण से २०९ वर्ष के अंत में बिंदुसार का पुत्र अशोक पाटलिपुत्र के राज्यासन पर बैठा । अशोक पहले जैनधर्म का अनुयायी था, पर राज्यप्राप्ति से ४ वर्ष के बाद उसने बौद्धधर्म का पक्ष किया, और अपना नाम "प्रियदर्शी'४ रखकर वह बौद्ध धर्म की आराधना में तत्पर हुआ। अशोक बड़ा पराक्रमी राजा था । उसने अपने अतुल पराक्रम से पृथिवीमंडल को जीतकर कलिंग, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र आदि देशों को अपने अधीन किया और वहाँ बौद्ध धर्म का विस्तार करके अनेक बौद्ध विहारों की ३. महावंश आदि बौद्धग्रंथों से भी इस बात की पुष्टि होती है । वहाँ लिखा है कि ३ वर्ष तक अशोक अन्यान्य दर्शनों को मानता रहा और पीछे से वह बौद्धधर्मी हो गया । ४. अशोक के प्रसिद्ध शिलालेखों में सर्वत्र इस "प्रियदर्शी" नाम का ही व्यवहार किया गया है। केवल 'मस्की' के एक शिलालेख में "देवानंपियस असोकस" इस प्रकार 'अशोक' नाम का व्यवहार किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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